शनिवार, 19 दिसंबर 2009
धरती को बचाने की बेईमान पहल और स्वार्थी दुनिया
मंगलवार, 15 दिसंबर 2009
अप्पन समाचार के विज्ञापनदाता
शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
प्रभाष जोशी का मशाल जलाकर ऐसे जाना !
बुधवार, 4 नवंबर 2009
...तो फिर क्यों न बन जायें माओवादी
शनिवार, 31 अक्टूबर 2009
यूपी से एमपी पहुँचा सीऍफ़एल
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
मूढ़ मानुष गाँधी को क्या जाने
सोमवार, 19 अक्टूबर 2009
कंसा के लोगों से सीख तो लो आतिशबाजों
भई, पैसे वाले ये हैं तो आतिशबाजी करेंगे गरीब के बच्चे ! लखनऊ की युगरत्न जैसी नन्हीं लड़की संयुक्त राष्ट्र में जाकर पर्यावरण को बचाने की अपील करती है, इसके बावजूद शर्म नहीं आती इन स्वार्थी व एशो-आराम की जिंदगी जीने वालों को। पूरी दुनिया में पर्यावरण को हो रहे नुकसान व उसे बचाने की मुहीम के बीच भी इस बार की दिवाली में बच्चे तो बच्चे बड़े भी करोड़ों के बम-पटाखें उडाये।
इस बार की दिवाली मैंने गुवाहाटी में मनाई। एक पत्रकार मित्र ने कहा कि अखबार का पेज छोड़ने के बाद खूब पटाखे उडायेंगे। मैंने उनसे कहा, भाई साहब पर्यावरण पहले से जख्मी है फिर उसे क्यों जख्मी करने पर तुले हैं ? तो उन्होंने हंसते हुए कहा, क्या सारंग जी आप भी कहाँ चले जाते हैं? मैंने इस बार तेवर में कहा, जब हम पड़े-लिखे लोग ही जानबूझ कर गलती करेंगे तो बाकि लोग क्या अनुसरण करेंगे ? उस वक्त तो उन पर असर हुआ पर रात में दस बम उडाये ही। हालाँकि इसी बीच देशभर से कुछ अच्छी खबरें भी आई है। गुजरात के मेहसाना जिले के एक गाँव कंसा के लोगों ने इस बार आतिशबाजी न कर पर्यावरण रक्षा का संदेश दे गए। एक ग्रामीण रमेश भाई का कहना है की यह समय पर्यावरण संरक्षण का है और इसके प्रति जागरूकता लाने का। उन्होंने दावा किया की उनके गाँव में दुकानों पर पटाखे नहीं बिकते हैं और दिवाली के दिन आतिशबाजी की बजाय खेल और सांस्कृतिक आयोजन किया जाता है।
लिहाजा, पर्यावरण की रक्षा केवल सरकार के बूते की बात नहीं है। इस विषय पर सरकार की नीति भी अव्यवहारिक है। वह गुटखा की बिक्री पर प्रतिबन्ध तो लगाती है पर गुटखा बनाने वालों पर नहीं। सिगरेट पीने वालों पर जुर्माना लगाती है पर निर्माताओं को खुली छूट दे रखी है। पटाखे उडाने वालों पर अंकुश लगाना चाहती है, लेकिन शिवाकाशी (पटाखा फैक्ट्री) में कोई हस्तक्षेप नहीं। बिसलेरी बोतलों व प्लास्टिक कचरों का धरती पर अम्बार लगता जा रहा है लेकिन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की नजर इन पर नहीं पड़ती है। खैर, ख़ुद जनता जाग जाय तो सरकारी पहल की कोई जरूरत नहीं।
आईये, हम भी संकल्प लें कि आनेवाले पर्व को इको-फ्रेंडली तरीके से मनाएंगे और पड़ोसियों से भी अनुनय-विनय करेंगे ऐसा ही कुछ कराने के लिए। बच्चों, तुम भी आगे आओ पर्यावरण को बचाने के लिए और एक हिस्सा बन जाओ इस मुहीम का।
बुधवार, 14 अक्टूबर 2009
धरती संकट में : जल के लिए तरसेंगे लोग
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
हम जन्नत यहीं बनायेंगे
अपनी मिहनत और मशक्कत से, आसमां को झुकायेंगे
सब्र रख ये अहले चमन, हम जन्नत यहीं बनायेंगे ।
सेहरा में सैर अपनी है, जलन तो जरूर होगी
पांव में छाले होंगे, मगर मुस्कुराएंगे ।
माना कि एक धुंध में दबे पड़े हैं हम,
लेकिन इंकलाबी फूंक से, हम इसे उडाएंगे।
ये जुनूने इश्क है, इसका नशा उतरेगा क्या
हद से गुजरने का फन, हम तुम्हें सिखायेंगे।
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
कब तक बिकेंगे आप
कौन कहता है कि पत्रकार बिकते नहीं हैं। पत्रकार भी बिकते हैं एकदम मोल के भाव। कौन कहता है कि कलम गिरवी नहीं रखी जाती है चंद सिक्कों की खातिर। कलम सच उगलती थी, पर बाजारवाद ने कलम को झूठ उगलना सिखला दिया। जिस पत्रकार की कलम सच उगलती है, उसकी हाथ कट ली जाती है। गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता का जमाना चला गया। प्रोफेशनल पत्रकारिता का युग चल रहा है। जो पत्रकार ब्लैक मनी पर पल रहे पदाधिकारियों एवं भ्रष्ट नेताओं की चमचागिरी करते हैं, वे उतने बड़े पत्रकार होते हैं। मंगरू मांझी भूख से बिलबिलाकर मरे तो चंद लाइन की ख़बर अन्दर के पेज पर छपती है। कोई भ्रष्ट व अपराधी किस्म का नेता बयान जारी कर दे तो मुख पृष्ठ की ख़बर बन जाती है। मंगरू की मौत बिक नहीं सकती न, इसलिय। नेताजी तो विज्ञापन देते हैं, पत्रकारों को ठेकेदारी में हिस्सा जो मिलता।
मुजफ्फरपुर शहर में ऐसे भी संपादक हैं जो कुछेक छुटभैये नेताओं की गाड़ी पर घुमते हैं। बड़े होटल का बिल चुकाते हैं नेताजी। बदले में उनकी फोटो छपती रहती है। बस उनकी भी जय-जय और इनकी भी जय-जय। पहले संपादक का मतलब होता था गंभीर, विद्वान आदमी। आज होता है अच्छा सेटर, अच्छा मैनेजर। सच लिखना, जन सरोकार रखना, समझौता न करना उनका धर्म नहीं रहा। शहर से देहात तक अनगिनत ऐसे पत्रकार हैं जो रोज अपनी कलम को बेचते हैं। बेचारी कलम स्याही की आंसू रोती रहती है। कोई चाय पानी में बिकता है तो कोई मोटी रकम में बिकता है। अगर किसी की बेटी की दहेज़ के लिए हत्या हो जाय तो बेटी के बाप को भी पैसे देकर ख़बर छपवानी पड़ती है। जिन पत्रकारों को मोटी पगार नहीं मिलती है तो उनकी व्यथा समझी जा सकती है। क्योंकि बड़े घराने के अखबारों का प्रबंधन उन्हें भ्रष्ट बनने को मजबूर करता है। गाँव के पत्रकारों का तो अखबार प्रबंधन शोषण करता ही है। मगर उनकी क्या कहेंगे, जो मोटी पगार व अन्य सुविधाएँ पाने के बावजूद काली कमाई कराने में लगे रहते हैं। कुछेक दो-चार एनजीओ का निबंधन कराकर अपने प्रभाव से ग्रांट प्राप्त करते हैं। इस तरह उनकी दुकानदारी चलती रहती है।
लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के गिरते स्तर से समाज का कितना भला होगा ? ये यक्ष प्रश्न आमलोगों एवं इमानदार लोगों को बार-बार परेशां करता है। समाज उन चंद इमानदार लोगों एवं पत्रकारों के कारण जीवित है जो अकेले लड़ते रहते हैं खुद से और भ्रष्ट समाज से। ऐसे ईमानदार पत्रकारों को सलाम!
मंगलवार, 15 सितंबर 2009
पूर्वोत्तर में हिन्दी पत्रकारिता
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
सोमवार, 17 अगस्त 2009
कमाल के हैं पूर्वोत्तर के संगीतप्रेमी : भट्ट
रविवार, 19 जुलाई 2009
यात्रा जारी रहेगी, चाहे मुसीबतें लाख आए
कुछ साल पहले तकरीबन साठ साल की बुधिया भूख व दवा के अभाव में मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल के जीर्ण-शीर्ण बेड पर तड़पती हुई दम तोड़ दी . मल-मूत्र में सना उसके कंकाल शव को पता नहीं अस्पताल प्रशासन ने कहाँ ठिकाने लगाया होगा . पता चला उसका परिजन कई वर्षों से उस बूढी का सुधि लेना छोड़ दिया था . यह वाकया मीडिया की सुर्खियाँ नहीं बनी . सरैया प्रखंड का डोमन मांझी भी भूख व कुपोषण से लड़ता हुआ दम तोड़ दिया . इस घटना से कल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की पोल तो खुलती ही है, जनता के साथ होने का दंभ भरने वाली मीडिया की नियत भी साफ हो जाती है . हर रोज सैंकडों बुधिया व डोमन काल के गाल में समा जाते हैं, लेकिन अखबारों के लिए इनके जीवन का कोइ मोल नहीं . मीडिया ने यह साबित कर दिया है कि सनसनीखेज खबरें, सेक्स, हारर, अपराध, गन्दी राजनीति को तरजीह देते हुए हम बाज़ार की ही बाजीगरी करेंगे . हमें पत्रकारीय धर्म और मिशन से नाता नहीं है . हम तो विज्ञापनी बाज़ार की चकाचौंध में अपना व्यवसाय चला रहे हैं . और आप जानते हैं कि व्यवसाय का गणित सिर्फ लाभ-हानि पर चलता है, मिशन के मनोविज्ञान पर नहीं . कुछेक अखबार भले अपवाद हो सकते हैं.
निःसंदेह, एसे घटाटोप में ही किसी विकल्प की खोज होती है . "अप्पन" समाचार" की परिकल्पना भी इन्हीं विकल्पों की तलाश के क्रम में बिहार के मुजफ्फरपुर की माटी में साकार हुआ . पिछले पांच-सात सालों में जिन चीजों ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वह है मीडिया में आई गिरावट . मैं परेशां होता रहा कि जब लोकतंत्र का प्रहरी ही पथभ्रष्ट व बिकाऊ हो जाय तो लोकतंत्र का क्या होगा ? मुझे लगने लगा कि अब वैकल्पिक मीडिया को बढावा देने का समय आ गया है . बस क्या था ? मैंने गाँव के मुद्दे, खेत-खलिहान से जुड़ा सवाल, सामाजिक कुरीतियाँ, कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार, गरीब-गुरबों का दर्द, गाँव की माटी में दफ़न होती लोकसंस्कृति, पर्यावरण, ग्रामीण प्रतिभाओं की सफल कहानियां, मानवाधिकार, महिला सशक्तिकरण, लोक-शिक्षण आदि मुद्दों पर प्रमुखता से अप्पन समाचार के जरिय फोकस करने का निर्णय लिया . और इस तरह शुरू हुआ एक छोटा परन्तु प्रभावकारी वैकल्पिक मीडिया आन्दोलन, जिसकी चर्चा बिहार के एक सुदूर गाँव चान्दकेवारी के खेत के मेड़ से होता हुआ सात समुन्दर पार पंहुच गया . सरैया की पूजा. जो इस ग्रामीण समाचार चैंनल के लिए रिपोर्टिंग का काम करती थी के मोबाइल पार एक दिन जर्मनी से "वायस ऑफ़ जर्मनी" का फोन आया तो वह रोमांचित होकर बातें की . उसका पूरा परिवार खुश था. अप्पन समाचार की खुशबू, अनीता, रूबी, रुमा के परिवारवाले भी बेहद खुश थे अपनी बेटियों व पतोहू की कहानियों को अखबारों के पन्नों व टीवी स्क्रीन पार देखकर . गाँव की लड़कियों ने जब पहली बार अपने अनगदे हाथों से जब कैमरे संभालना शुरू किया तो आस-पड़ोस के लोगों ने फब्तियां कसने लगे . कहने लगे-घर की इज्जत को चौखट से बाहर निकाला है, नाक कटेगी तो पता चलेगा . फिर भी इन चारों के परिजनों ने अनसुनी कर बेटियों को प्रोत्साहित किया . बिना विधिवत प्रशिक्षण के इन लड़कियों ने जिस आत्मविश्वास के साथ खबर जुटाना शुरू किया कि आप भी वाह कहे बिना नहीं रह सकते . कोसी की प्रलयंकारी बाढ़ को कवर करने गयी रिंकू कुमारी, अनीता व खुशबू के जज्बे को देखकर एनडीटीवी के पत्रकार अजय कुमार ने भी सराहा . मेगाकैम्प में आये मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के कार्यक्रम को कवर करने के क्रम में रिंकू के पैर का नाखून उखड गया, खून निकलता रहा, लेकिन रिकॉर्डिंग रुकी नहीं . हाल में तुर्की में पधारे पूर्व राष्ट्रपति व मिसाईल मैन डॉ ए पी जे अबदुल कलाम के कार्यक्रम को भी अप्पन समाचार की फायरब्रांड गर्ल्स नीरू चौधरी, रिंकू, सुब्बी ने बड़ी बारीकी से कवर किया . लोकसभा चुनाव के दौरान इस ग्रामीण चैनल ने "वोट की चोट" कार्यक्रम के जरिय वोटर जागरूकता का भी कार्यक्रम चलाया . पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह भी गाँव की इन महिला पत्रकारों से रूबरू होकर खुश थे . ज्ञात हो कि अप्पन समाचार का प्रसारण डॉ. सिंह के लोकसभा क्षेत्र के चार प्रखंडों में ही होता है . चुनाव के दौरान कुछ राजनीतिबाजों ने अप्पन समाचार को खरीदने की भी कोशिश किया . सात-आठ लाख तक के आफर मिले, लेकिन मैंने साफ ठुकराते हुए कहा कि यह चैनल वैकल्पिक मीडिया है, बिकाऊ मीडिया का विकल्प .
सोलह अक्टूबर २००८ की सुहानी शाम मेरे जीवन की सबसे सुखद शाम थी . सीएनएन-आईबीएन की ओर से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने उस शाम एक भव्य समारोह में अप्पन समाचार के जैसे अनोखे प्रयोग के लिए मुझे "सिटिज़न जर्नलिस्ट अवार्ड" से सम्मानित किया . प्रख्यात टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई, आशुतोष, आजतक की नलिनी सिंह, कुलदीप नैयर, गायक हरिहरन, फिल्म अभिनेता राहुल बोस, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी के बीच खुद को पाकर गौरवान्वित था . हवाई यात्रा की मुरादें पूरी हुईं.
मुंबई से आकर स्वतंत्र डॉक्युमेंट्री फिल्म मेकर अब्राहम शिरले और अमित मधेशिया अप्पन समाचार पर शोध किया . अचानक राष्ट्रिय-अन्तर्राष्ट्रीय सुर्खियों में छा गया "अप्पन समाचार" सिविल सर्विसेस क्रानिकल जैसी पत्रिका ने अप्पन समाचार को जी के के सवाल के रूप में शामिल किया . यह सब पूरी टीम को उर्जा देता रहा, लेकिन यह लड़ख्राती शुरुआत आज भी संसाधनों के अभाव में लड़खराते हुए ही आगे बढ़ रही है . प्रशंसा तो मिली पर आर्थिक सहयोग कहीं से नहीं मिली . बिहार सरकार ने भी इस प्रयोग की सुधि नहीं ली . सहयोग के नाम पर एकमात्र पत्रकार मित्र भारतीय बसंत कुमार ने एक साल के लिए प्रोजेक्टर देकर मदद की . मुजफ्फरपुर स्थित सूर्या फिल्मस के राजेश कुमार का सहयोग भुलाया नहीं जा सकता है . इन्होने तकनीकी सहयोग निरंतर दिया है . कोसी चुनौती के संयोजक लोकेन्द्र भारतीय का योगदान भी ताकत देता रहा है . अमृतांज इन्दीवर, फूलदेव पटेल, पंकज सिंह, पत्रकार विवेकचंद्र, प्रोफेसर निराला वीरेंदर, अनिल रत्ना. डॉ हेम्नारायण विश्वकर्मा, नसीमा का भी सहयोग समय-समय पर मिलाता रहा है . संसाधन के नाम पर आज भी हमारे पास दो माईक. एक त्रिपोद और एक-दो फर्नीचर ही अपने पास है. कैमरे व प्रोजेक्टर या तो भाड़े पर लेते हैं या मित्रो का सहयोग .
संघर्ष तो हैं ही, खतरें भी कम नहीं हैं इस काम में . लेकिन लड़कियां कमर कसी हैं . सरैया के प्रखंड विकास पदाधिकारी और चान्दकेवारी के मुखिया के गुर्गे से धमकियाँ मिल चुकी हैं टीम को . इस चैनल के खबर का असर ही हैं कि ग्रामीण बैंक, धरफरी ने किसानों को बिना घूस लिए केसीसी ऋण का लाभ देना शुरू किया . नीम के पेड़ को लेकर गाँव में व्याप्त भ्रांतियां दूर होने लगी है .
जानकारी हो कि अप्पन समाचार ६ दिसम्बर २००७ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारू प्रखंड के रामलीला गाछी (चान्दकेवारी) में शुरू हुआ था . यह आल वूमेन चैनल के रूप में चर्चित हुआ . एक गाँव से शुरू हुआ यह "आल वूमेन न्यूज़ नेटवर्क" आज जिले के पांच प्रखंडों के तक़रीबन दो दर्जन से अधिक गाँव को कवर करता है . अप्पन समाचार बुलेटिन ४५ मिनट का होता है और प्रोजेक्टर या डीवीडी दे जरिये गाँव के हाट-बाजारों में दिखाया जाता है . रामलीला गाछी, धरफरी, देवरिया, सरैया, पकडी पकोही, मिठनपुरा, भगवानपुर सहित दर्जनों जगहों के लोग अपनी समस्यायों को टीवी स्क्रीन पर देखते हैं. अप्पन समाचार के लिए लगभग पंद्रह लड़कियां एंकरिंग, रिपोर्टिंग, कैमरा चलाने का काम, एडिटिंग आदि का काम देखती हैं. चैनल की दो लड़कियां रांची जाकर डाक्युमेंटरी फिल्म मेकिंग का छः दिन का ट्रेनिंग ले चुकी हैं. मीडिया वर्कशॉप दे द्वारा भी इन महिला पत्रकारों को पत्रकारिता का प्रशिक्षण दिया जाता रहा है .
यह लड़खारती शुरुआत एक दिन सफल यात्रा होगी और ग्रामीण मीडिया का एक माडल भी, इसी उम्मीद दे साठ यह संघर्ष जारी रहेगा . चाहे मुश्किलें लाख आये .
संतोष सारंग
रविवार, 14 जून 2009
दलाली करना पत्रकारिता की मजबूरी नहीं : प्रभाष जोशी
गुरुवार, 11 जून 2009
ख़बर बेचने वाले, ख़बरदार !
जी, जब खरीद-बिक्री की बात चली है तो चलिए न मीडिया की मंडी में देखते हैं खबरों का भाव क्या है ? चुनाव के कारण खबरों का भाव थोड़ा चढ़ गया था, फिलहाल कुछ ठीक-ठाक चल रहा है । चुनाव के दरम्यान कुछ मीडिया संस्थानों ने खबरों के साथ अपना जमीर भी बेचा । धनी खरीददारों ने तो जमकर मार्केटिंग की, परन्तु गरीब प्रत्याशी तो देखते ही रह गए । सुधि पाठक भी ठगे रह गए । पर सियासत पर तिजारत करनेवाले की तो जय-जय हो गयी । यह अलग बात है कि इस काली कमाई को श्वेत धवल चादर से ढकने के मकसद से जनजागरण भी चलता रहा । शिवहर से भारतीय जनतांत्रिक जनता दल के प्रत्याशी शत्रुघ्न कुमार और बसपा के वैशाली से शंकर महतो जैसे हजारों सामान्य आर्थिक पृष्टभूमि वाले प्रत्याशियों में आज भी गुस्सा है । आक्रोश तो प्रबुद्ध पाठको में भी है ।
एक घटना का जिक्र करना यहाँ उचित होगा । बातें चुनाव से जुड़ी हैं । बिहार के मुजफ्फरपुर के खुदी राम बोस स्टेडियम में मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार की चुनावी जनसभा थीं । पत्रकार गैलरी में सजी कुर्सियों पर स्थानीय नेता-कार्यकर्ता पहले से जमे थे । शहर के एक वरिष्ठ पत्रकार ने उनसे आग्रहपूर्वक कहा, 'भईया, ये कुर्सियां पत्रकारों के लिए रखी हैं, कृपया खाली तो कर दे ।' मंच पर विराजमान एक सज्जन ने आवाज दी, 'भाई साहेब, पैसा लेकर ख़बर छापते हैं तो कुर्सी कैसे मिलेगी । पैसा और कुर्सी दोनों नहीं मिलती हैं ।' उस गंभीर व तेजतर्रार पत्रकार की जैसे जुबान ही सिल गयी । वे बुदबुदाये, ' इमान बेचता है इक्का-दुक्का अखबार और भुगतना पड़ता है पूरी पत्रकार बिरादरी को ।' और देर से खड़े कुछ पत्रकारों ने बांस-बल्ले के सहारे उस सभा को कवर किया । यह मीडिया के गिरते स्तर की बानगी भर नहीं है, बल्कि पत्रकारिता जगत को शर्मशार करने के लिए काफी है ।
बुधवार, 10 जून 2009
मैं भी सत्ता गढ़ लेता
"तुझ सा लहरों में बह लेता
तो मैं भी सत्ता गढ़ लेता,
इमान बेचता चलता तो
मैं भी महलों में रह लेता ।"
"हर दिल पर छूकर चली मगर
आंसू वाली नमकीन कलम,
मेरा धन है स्वाधीन कलम ।"
- गोपाल सिंह 'नेपाली'
सोमवार, 1 जून 2009
सोमवार, 25 मई 2009
किसानों का अनोखा पुस्तकालय
इस लाइब्रेरी की खासियत है कि इसमें किताबों के अलावे कृषि उपकरण यथा-खुरपी, कुदाल, तेंगारी, हंसुआ, स्प्रे मशीन, पम्पिंग सेट आदि कृषि के लिए उपयोगी सामान उपलब्ध हैं । जो किसान इस लाइब्रेरी के सदस्य हैं, वे ज्ञानवर्धन के अलावे खेती के लिए उपयोगी उपकरण मुफ्त में या मामूली भाड़ा देकर ले जाते हैं । काम ख़त्म होते ही वे पुनः सामानों को पुस्तकालय में जमा कर देते हैं ताकि दूसरे किसान भी इसका लाभ उठा सके । सदस्यों से जो रुपये आते हैं उसे लाइब्रेरी के विकास में लगाया जाता है । लाइब्रेरी में प्रेमचंद के "गोदान" से लेकर रामब्रिक्ष बेनीपुरी की "अम्बपाली" और कृषि कार्य एवं लघु उद्योग से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराने वाली पुस्तकों के अलावे विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं भी उपलब्ध हैं । यहाँ महीने में दो-चार बार किसानों की गोष्टियाँ भी आयोजित होती हैं ।
आभार इनको...
रविवार, 17 मई 2009
अप्पन समाचार का विस्तार
- पूजा प्रीतम, रिपोर्टर, अप्पन समाचार
बुधवार, 13 मई 2009
मुजफ्फरपुर की सड़क पर तड़पती रही पत्रकारिता
सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के मामले में मुजफ्फरपुर बिहार का अग्रणी शहर माना जाता है । इसका गौरवशाली इतिहास रहा है आए, जयप्रकाश ने प्रयोग किया, विनोबा के भूदान आन्दोलन का गवाह रहा है यह शहर । शहीद जुब्बा सहनी, रामब्रिक्ष बेनीपुरी, शहीद खुदीराम बोस, महाकवि जानकी बल्लव शास्त्री, भगवान महावीर, लंगट सिंह, लक्ष्मी साहू जैसे न जाने कितने ही विभूतियों की कर्मस्थली, जन्मस्थली और शहादतस्थली रही है यहाँ की धरती । आज भी इस तपोभूमि पर महान समाजवादी चिन्तक सच्चिदानंद सिन्हा की तप और साधना चल रही है, अपने जीवन को आन्दोलन और पर्यावरण के लिए समर्पित करनेवाले अनिल प्रकाश की सक्रियता युवाओं को प्रेरित करती है, वही एक साधारण परिवार में जन्मी मधुमक्खी वाली अनीता ने सफलता की ऐसी कहानी लिख दी कि सात समुन्दर पार यहाँ की शहद की मिठास पहुँच गयी, तो इन पंक्तियों के लेखक की अनोखी परिकल्पना "अप्पन समाचार" को ग्रामीण लड़कियों ने कैमरा व त्रिपोद से साकार कर मुजफ्फरपुर का नाम देश के बाहर रौशन कर दिया । इतना ही नहीं, कईं नामी पत्रकार व संपादक दिया है इस शहर ने देश को । इस धरती के नाम जड़े तमाम उपलब्धियों को शब्दबद्ध किया जाए तो एक पुरी किताब बन जायेगी । संक्षेप में कहें तो मुजफ्फरपुर समृद्ध विरासत की धरती रही है ।
ऐसे में यदि कोई संपादक इस शहर में ऐसा आ जाए जो छुटभैये नेताओं की स्कोर्पियो पर घूमे, दी पार्क होटल का बिल चुकाने के बदले उसका फोटू छापे, अपने मातहत संवाददाताओं से किचेन के सामान का बिल चुकता करवाए और शहर के एक बड़े व्यवसायी, जो एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता भी है, की चाकरी करे तो इस शहर के संस्क्रितिकर्मिओं, समाजसेविओं, बुद्धिजीविओं पर क्या बीतेगा ? गत दो-तीन साल से मुजफ्फरपुर और आस-पास के जिले की पत्रकारिता अपने हाल पर आंसू बहा रही है । दारू और लड़की की बात करने वाला वह संपादक पता नहीं कैसी परम्परा का संवाहक बनेगा । उक्त अखबार के मालिक को यदि अधिक-से-अधिक पैसे ही कमाना है तो किसी सुंदर यौनकर्मी को संपादक बना दे ताकि अधिकाधिक टारगेट पुरा करेगी ।
एक बार उक्त संपादक महोदय ने उक्त नेता सह वाहन व्यवसायी की कंपनी के प्रचार में अपनी पूरी सम्पादकीय टीम ही सड़क पर उतार दी । ख़ुद भी सड़क पर टोपी लगाकर खड़े हो गए । सच पूछिये, उस दिन जनतंत्र का प्रहरी (पत्रकारिता) मुजफ्फरपुर की तपती सड़क पर छटपटा रही थी । पता चला, उक्त संपादक ने यह कु(कर्म) सिर्फ़ इसलिय किया था की उस व्यवसायी से संपादक महोदय ने एक-दो लाख रुपये (उधार या उपहार) लिया हुआ था । आपको बताते चले की इस श्रीमान की कलम से यहाँ के पाठकों को आज तक कुछ भी नसीब नहीं हुआ है ।
गनीमत है की ऐसे घटाटोप में कुछ रोशनी शेष है । प्रभात ख़बर, जनसत्ता जैसे कुछ हिन्दी के अखबार न होते तो शायद गाँधी का अन्तिम आदमी की आवाज भी पूरी तरह दब गयी होती । लोकतंत्र जिन्दा है तो कुछ ऐसे ही अखबारों से, लघु पत्र-पत्रिकाओं से ।
खैर, ब्लॉग आन्दोलन विकल्प बनकर उभर रहा है । ऐसे मीडिया मालिकों, संपादकों, दलालों से सावधान !
रविवार, 10 मई 2009
पत्रकारिता, पैसा और जनता
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
मीडिया की सुर्खियों में अप्पन समाचार
गुरुवार, 9 अप्रैल 2009
"वोट की चोट" दे रही है अप्पन समाचार की रिपोर्टर
आपको बता दे कि यह इलाका वैशाली लोकसभा का पश्चिमी क्षेत्र है । यहाँ से बाहुबली मुन्ना शुक्ला जनता दल यू से अपना भाग्य आजमा रहे हैं, वहीं भारत सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह राजद से चुनाव लड़ रहे हैं । मुन्ना शुक्ला पर कई आपराधिक मामले चल रहे हैं, लेकिन साफ- सुथरा सरकार देने का वादा कराने वाली नीतिश सरकार दागियों को चुनाव में उतरा है ।
इधर, सरैया में भी वोट की चोट कार्यक्रम का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम का सञ्चालन रिपोर्टर पूजा प्रीतम एवं पत्रकार टी एन सिंह ने मिलकर किया । कैमरा चला रही थी सरोज कुमारी । लोकसभा इलेक्शन पर वोटर्स एवं स्थानीय राजनितीक कार्यकर्ता व नेताओं के बीच परिचर्चा के जरिये जागरूकता पैदा कराने का काम किया अप्पन समाचार टीम ने । दागियों को वोट न देने की अपील की गयी । इस कार्यक्रम में स्थानीय राजद के पूर्व विधायक मिथिलेश प्रसाद यादव एवं जनता दल यू से जुड़े स्थानीय नेता राजकुमार साह भी मौजूद थे ।
मरवान में भी वोट की चोट के जरिये मतदाताओं को जागरूक कराने का काम किया गया । अप्पन समाचार की न्यूज़ एडिटर नीरू चौधरी एवं वीडियो एडिटर रिंकू कुमारी ने कार्यक्रम का सञ्चालन किया। यहाँ, पुरूष एवं महिला मतदाताओं ने इस संवाद में जमकर नेताओं के करतूतों के खिलाफ बोला । साथ में थे अप्पन समाचार से जुड़े राजेश कुमार ।
जनतंत्र मजबूत कराने के लिए---
देश के विकाश के लिए---
दागियों को भागने के लिए---
सच्चे को चुनने के लिए---
रविवार, 15 मार्च 2009
....ताकि अभियान थमे नहीं
अप्पन समाचार के शुरू हुए सवा साल हो गए । संसाधन की कमी के कारण पुरी टीम को संघर्ष करना पड़ रहा है । सिर्फ़ एक त्रिपोद एवं एक माईक के अलावा टीम के पास कुछ नहीं है । कैमरा मांग-चांग करके ही समाचार शूट किया जाता है ।
तमाम ब्लॉगर एवं पाठकों से अपील है कि हमें संसाधन से सहयोग करें, ताकि एक अनोखा अभियान दो कदम चल कर थमे नहीं ।
अप्पन समाचार को जरूरत है -
१ कैमरा, ३सी सी डी - ३
२ त्रयोपोद - ३
३ कंप्यूटर - १
४ सॉफ्टवेर, न्यूज़ मिक्सिंग के लिए
मंगलवार, 3 मार्च 2009
चूहा पकड़ने वाली हाथ अब थामेंगी कैमरा
अप्पन समाचार ने इस बिरादरी की लड़कियों को आगे लाने के लिए एक अभियान चलाया है, जिसके तहत मुशहर महिलायों को अप्पन समाचार से जोड़ा जा रहा है । कल तक चूहा पकड़ने वाली वही हाथ अब कैमरा थामकर लेंगी नेताओं एवं अफसरों के इंटरव्यू । Mushahari, Kanti और Madwan block में Appan समाचार की टीम mushahar mahilaon से lagatar मिल रही हैं ।