शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

यूपी से एमपी पहुँचा सीऍफ़एल



धरती की तपन से अब सरकार के भी पसीने छुटने लगे हैं। जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी गंभीर दिख रही हैं। हम धन्यवाद देते हैं बहनजी (मायावती) को, जिनके शासन ने यूपी में सभी सरकारी दफ्तरों में विद्युत ऊर्जा बचत के लिए पहल शुरू कर दी है। पिछले दिनों मीडिया में खबरें आई थीं कि यूपी सरकार ने सभी कार्यालयों में लटके बल्बों को हटाकर सीऍफ़एल लगाने का आदेश जारी किया है तो पर्यावरण प्रेमियों को प्रसन्नता जरूर हुई होगी। यूपी के बाद अब मध्य प्रदेश इस कड़ी में शामिल हो गया है। वहां की सरकार ने इसी महीने (अक्टूबर) उत्तर प्रदेश की तर्ज पर अपने सभी कार्यालयों में सीऍफ़एल के प्रयोग की पहल शुरू कर दी है। निःसंदेह, दोनों सरकारें धन्यवाद की पात्र हैं। अन्य राज्यों को भी कुछ ऐसा ही कदम उठाना चाहिय पर्यावरण संरक्षण की लिए। सीऍफ़एल (कोम्पैक्ट फ्लूरेसेंट लाइट) के प्रयोग के मुख्यतः दो फायदे हैं। पहला, इससे विद्युत ऊर्जा की काफी बचत होती है तो दूसरे ओजोन छतरी को नुकसान पहुंचाने वाले अवयव कार्बन का उत्सर्जन भी कम जाता है। यह जानते हुए भी लोगों की पहुँच सीऍफ़एल तक नहीं हुई है, क्योंकि इसकी कीमत अत्यधिक है। ६० वाट का साधारण बल्ब ५-६ रुपये में बाज़ार में उपलब्ध हैं। इसलिए आम उपभोक्तायों का घर इसी बल्ब से रौशन होता है। सीऍफ़एल की कीमत कम हो इसके लिय सरकार व् बल्ब बनाने वाली कंपनियों के बीच कुछ ठोस एवं ईको-फ्रेंडली नीति पर काम होना चाहिय। इसको लेकर जागरूकता की भी कमी है।
आईये, हम सब मिलकर बल्बों, ट्यूबलाईट व् अधिक ऊर्जा खपत कराने वाले बल्बों को टा-टा कहें और सीऍफ़एल के प्रयोग की ओर कदम बढाएं। एक विन्रम निवेदन है की ख़ुद ईको-फ्रेंडली (पर्यावरण मित्र) बने और दूसरे को भी इसके लिए प्रेरित करें। बेवजह दिन में जलते स्ट्रीट लाईट को बिना शरमाय जरूर स्विच ऑफ़ करें। एसा अपने घर में भी करें। ऊर्जा बचत के साथ पैसा का भी बचत होगा और कार्बन उत्सर्जन भी कमेगा।

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