सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

कंसा के लोगों से सीख तो लो आतिशबाजों


हम इतने पिछडे क्यों है ? क्योंकि हम शिक्षित हैं। हमसे अच्छा तो अनपढ़ है, जो जानकारी व ज्ञान के अभाव के बावजूद हमसे ज्यादा समझदार हैं, इको फ्रेंडली हैं। हम बुद्धिजीवी जो ठहरे। भला कुल्हड़ में चाय क्यों पियें, कपडे के झोले में सब्जी क्यों धोएं, सायकिल क्यों चलायें ? प्लास्टिक के कप में चाय पीना, पालीथीन में सब्जी ढोना, बाईक-कार चलाना, एसी कमरे में रहना बड़े लोगों का स्टेटस सिम्बल जो है। ये तथाकथित पढाकू लोग अपना लाइफ स्टाइल चेंज नहीं करेंगे, क्योंकि फटाफट जिंदगी जीने में विश्वास करते हैं, भाड़ में जाए पर्यावरण, प्रकृति और प्राणी जगत।
भई, पैसे वाले ये हैं तो आतिशबाजी करेंगे गरीब के बच्चे ! लखनऊ की युगरत्न जैसी नन्हीं लड़की संयुक्त राष्ट्र में जाकर पर्यावरण को बचाने की अपील करती है, इसके बावजूद शर्म नहीं आती इन स्वार्थी व एशो-आराम की जिंदगी जीने वालों को। पूरी दुनिया में पर्यावरण को हो रहे नुकसान व उसे बचाने की मुहीम के बीच भी इस बार की दिवाली में बच्चे तो बच्चे बड़े भी करोड़ों के बम-पटाखें उडाये।
इस बार की दिवाली मैंने गुवाहाटी में मनाई। एक पत्रकार मित्र ने कहा कि अखबार का पेज छोड़ने के बाद खूब पटाखे उडायेंगे। मैंने उनसे कहा, भाई साहब पर्यावरण पहले से जख्मी है फिर उसे क्यों जख्मी करने पर तुले हैं ? तो उन्होंने हंसते हुए कहा, क्या सारंग जी आप भी कहाँ चले जाते हैं? मैंने इस बार तेवर में कहा, जब हम पड़े-लिखे लोग ही जानबूझ कर गलती करेंगे तो बाकि लोग क्या अनुसरण करेंगे ? उस वक्त तो उन पर असर हुआ पर रात में दस बम उडाये ही। हालाँकि इसी बीच देशभर से कुछ अच्छी खबरें भी आई है। गुजरात के मेहसाना जिले के एक गाँव कंसा के लोगों ने इस बार आतिशबाजी न कर पर्यावरण रक्षा का संदेश दे गए। एक ग्रामीण रमेश भाई का कहना है की यह समय पर्यावरण संरक्षण का है और इसके प्रति जागरूकता लाने का। उन्होंने दावा किया की उनके गाँव में दुकानों पर पटाखे नहीं बिकते हैं और दिवाली के दिन आतिशबाजी की बजाय खेल और सांस्कृतिक आयोजन किया जाता है।
लिहाजा, पर्यावरण की रक्षा केवल सरकार के बूते की बात नहीं है। इस विषय पर सरकार की नीति भी अव्यवहारिक है। वह गुटखा की बिक्री पर प्रतिबन्ध तो लगाती है पर गुटखा बनाने वालों पर नहीं। सिगरेट पीने वालों पर जुर्माना लगाती है पर निर्माताओं को खुली छूट दे रखी है। पटाखे उडाने वालों पर अंकुश लगाना चाहती है, लेकिन शिवाकाशी (पटाखा फैक्ट्री) में कोई हस्तक्षेप नहीं। बिसलेरी बोतलों व प्लास्टिक कचरों का धरती पर अम्बार लगता जा रहा है लेकिन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश की नजर इन पर नहीं पड़ती है। खैर, ख़ुद जनता जाग जाय तो सरकारी पहल की कोई जरूरत नहीं।
आईये, हम भी संकल्प लें कि आनेवाले पर्व को इको-फ्रेंडली तरीके से मनाएंगे और पड़ोसियों से भी अनुनय-विनय करेंगे ऐसा ही कुछ कराने के लिए। बच्चों, तुम भी आगे आओ पर्यावरण को बचाने के लिए और एक हिस्सा बन जाओ इस मुहीम का।


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