सोमवार, 25 मई 2009

किसानों का अनोखा पुस्तकालय


पुस्तकालय का मतलब होता है किताबों का घर । लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक ऐसा भी पुस्तकालय हैं, जो सिर्फ़ किताबों का घर नहीं है बल्कि किताबों और कृषि उपकरणों का घर है । जिले के पारू प्रखंड के चान्द्केवारी पंचायत में एक ऐसा ही पुस्तकालय है, जिसका नाम है-"किसान लाइब्रेरी सह सूचना केन्द्र" । आसपास के कुछ उत्साही नौजवान अमृतांज इन्दीवर, पंकज सिंह, फूलदेव पटेल, सकलदेव दास, कादिर, किसान जगत कुमार कौशिक ने मिलकर इस अनोखे लाइब्रेरी सह सूचना केन्द्र को स्थापित कर किसानों के ज्ञानवर्धन का पक्का इंतजाम कर दिया है । यह पुस्तकालय मिशन आई इंटरनेशनल सर्विस संगठन की एक नायाब पहल है ।
इस लाइब्रेरी की खासियत है कि इसमें किताबों के अलावे कृषि उपकरण यथा-खुरपी, कुदाल, तेंगारी, हंसुआ, स्प्रे मशीन, पम्पिंग सेट आदि कृषि के लिए उपयोगी सामान उपलब्ध हैं । जो किसान इस लाइब्रेरी के सदस्य हैं, वे ज्ञानवर्धन के अलावे खेती के लिए उपयोगी उपकरण मुफ्त में या मामूली भाड़ा देकर ले जाते हैं । काम ख़त्म होते ही वे पुनः सामानों को पुस्तकालय में जमा कर देते हैं ताकि दूसरे किसान भी इसका लाभ उठा सके । सदस्यों से जो रुपये आते हैं उसे लाइब्रेरी के विकास में लगाया जाता है । लाइब्रेरी में प्रेमचंद के "गोदान" से लेकर रामब्रिक्ष बेनीपुरी की "अम्बपाली" और कृषि कार्य एवं लघु उद्योग से सम्बंधित जानकारी उपलब्ध कराने वाली पुस्तकों के अलावे विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं भी उपलब्ध हैं । यहाँ महीने में दो-चार बार किसानों की गोष्टियाँ भी आयोजित होती हैं ।

आभार इनको...

अप्पन समाचार की टीम की ओर से तमाम सहयोगिओं एवं मददगारों का हम आभारी हैं । इन महानुभावों ने इस अनोखे कार्यक्रम को वैचारिक, आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, इन्हें बहुत-बहुत धन्यवाद ! ये हैं-बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ के अध्यक्ष श्री लोकेन्द्र भारतीय, वरिष्ट पत्रकार भारतीय बसंत कुमार, मिशन आई के महासचिव प्रोफ़ेसर निराला वीरेंदर, मानवाधिकार हम सबका के संपादक श्री अमृतांज इन्दीवर, किसान साथी क्लब के सचिव पंकज सिंह, क्लब के अध्यक्ष फूलदेव पटेल, डॉ अर्जुन कुमार, मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ हेमनारायण विश्वकर्मा, पत्रकार विवेक कुमार, डॉ टी एन सिंह, मीडिया स्कैन के संपादक आशीष कुमार अंशु, गाँधी नगर में रह रहे गुंजेश्वर आनंद आदि ।

रविवार, 17 मई 2009

अप्पन समाचार का विस्तार

  • पूजा प्रीतम, रिपोर्टर, अप्पन समाचार
अप्पन समाचार अब मुजफ्फरपुर जिले के पांच प्रखंडों साहेबगंज, सरैया, मरवन, पारू और मुशहरी में दिखाया जाता है । इन प्रखंडों के लगभग पांच दर्जन गाँव को कवर कर रही हैं अप्पन समाचार की महिला पत्रकार । स्क्रीनिंग किया जाता है लगभग डेढ़ दर्जन स्थानों पर । गाँव के हाट-बाज़ार, जहाँ प्रोजेक्टर के माध्यम से समाचार दिखाया जाता है, ये हैं- रामलीला गाछी, देवरिया, सरैया, पकरी-पकोही, (मिठनपुरा) मरवन, भगवानपुर आदि । अब पन्द्रह लड़कियां जुड़ चुकी है पत्रकार के रूप में । इनके माता-पिता भी गौरवान्वित है अपनी लड़किओं की कामयाबी से । इनके माता-पिता को सलाम ! इसलिए की अपनी बेटियों को घर की दहलीज़ से बाहर जाने की इजाजत दी ।

बुधवार, 13 मई 2009

मुजफ्फरपुर की सड़क पर तड़पती रही पत्रकारिता

* संतोष सारंग
सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना के मामले में मुजफ्फरपुर बिहार का अग्रणी शहर माना जाता है । इसका गौरवशाली इतिहास रहा है आए, जयप्रकाश ने प्रयोग किया, विनोबा के भूदान आन्दोलन का गवाह रहा है यह शहर । शहीद जुब्बा सहनी, रामब्रिक्ष बेनीपुरी, शहीद खुदीराम बोस, महाकवि जानकी बल्लव शास्त्री, भगवान महावीर, लंगट सिंह, लक्ष्मी साहू जैसे न जाने कितने ही विभूतियों की कर्मस्थली, जन्मस्थली और शहादतस्थली रही है यहाँ की धरती । आज भी इस तपोभूमि पर महान समाजवादी चिन्तक सच्चिदानंद सिन्हा की तप और साधना चल रही है, अपने जीवन को आन्दोलन और पर्यावरण के लिए समर्पित करनेवाले अनिल प्रकाश की सक्रियता युवाओं को प्रेरित करती है, वही एक साधारण परिवार में जन्मी मधुमक्खी वाली अनीता ने सफलता की ऐसी कहानी लिख दी कि सात समुन्दर पार यहाँ की शहद की मिठास पहुँच गयी, तो इन पंक्तियों के लेखक की अनोखी परिकल्पना "अप्पन समाचार" को ग्रामीण लड़कियों ने कैमरा व त्रिपोद से साकार कर मुजफ्फरपुर का नाम देश के बाहर रौशन कर दिया । इतना ही नहीं, कईं नामी पत्रकार व संपादक दिया है इस शहर ने देश को । इस धरती के नाम जड़े तमाम उपलब्धियों को शब्दबद्ध किया जाए तो एक पुरी किताब बन जायेगी । संक्षेप में कहें तो मुजफ्फरपुर समृद्ध विरासत की धरती रही है ।
ऐसे में यदि कोई संपादक इस शहर में ऐसा आ जाए जो छुटभैये नेताओं की स्कोर्पियो पर घूमे, दी पार्क होटल का बिल चुकाने के बदले उसका फोटू छापे, अपने मातहत संवाददाताओं से किचेन के सामान का बिल चुकता करवाए और शहर के एक बड़े व्यवसायी, जो एक राष्ट्रीय पार्टी का नेता भी है, की चाकरी करे तो इस शहर के संस्क्रितिकर्मिओं, समाजसेविओं, बुद्धिजीविओं पर क्या बीतेगा ? गत दो-तीन साल से मुजफ्फरपुर और आस-पास के जिले की पत्रकारिता अपने हाल पर आंसू बहा रही है । दारू और लड़की की बात करने वाला वह संपादक पता नहीं कैसी परम्परा का संवाहक बनेगा । उक्त अखबार के मालिक को यदि अधिक-से-अधिक पैसे ही कमाना है तो किसी सुंदर यौनकर्मी को संपादक बना दे ताकि अधिकाधिक टारगेट पुरा करेगी ।
एक बार उक्त संपादक महोदय ने उक्त नेता सह वाहन व्यवसायी की कंपनी के प्रचार में अपनी पूरी सम्पादकीय टीम ही सड़क पर उतार दी । ख़ुद भी सड़क पर टोपी लगाकर खड़े हो गए । सच पूछिये, उस दिन जनतंत्र का प्रहरी (पत्रकारिता) मुजफ्फरपुर की तपती सड़क पर छटपटा रही थी । पता चला, उक्त संपादक ने यह कु(कर्म) सिर्फ़ इसलिय किया था की उस व्यवसायी से संपादक महोदय ने एक-दो लाख रुपये (उधार या उपहार) लिया हुआ था । आपको बताते चले की इस श्रीमान की कलम से यहाँ के पाठकों को आज तक कुछ भी नसीब नहीं हुआ है ।
गनीमत है की ऐसे घटाटोप में कुछ रोशनी शेष है । प्रभात ख़बर, जनसत्ता जैसे कुछ हिन्दी के अखबार न होते तो शायद गाँधी का अन्तिम आदमी की आवाज भी पूरी तरह दब गयी होती । लोकतंत्र जिन्दा है तो कुछ ऐसे ही अखबारों से, लघु पत्र-पत्रिकाओं से ।
खैर, ब्लॉग आन्दोलन विकल्प बनकर उभर रहा है । ऐसे मीडिया मालिकों, संपादकों, दलालों से सावधान !

रविवार, 10 मई 2009

पत्रकारिता, पैसा और जनता

इस बार के चुनाव में पत्रकारिता का चीरहरण हो गया । जनता बेचारी मूकदर्शक बनी रही द्रित्राष्ट्र की तरह । लूट-पिट गयी पत्रकारिता । अखबारों के मालिकों ने खूब खेली पैसो की होली । पाठक समझ नहीं सके कि जो वह पढ़ रहे हैं वह ख़बर है या विज्ञापन । मुजफ्फरपुर में दो राष्ट्रीय अखबारों की उनिट हैं । दैनिक हिंदुस्तान और दैनिक जागरण का । मुझे एक दिन पता चला कि कानपूर से यहाँ के संपादक को एक पत्र आया है कि जनसंपर्क की ख़बर छपने के बदले प्रत्याशियों से पैसे लें । यानि पुरे लाख-दो लाख के पॅकेज थे । बड़े दल के प्रत्याशियों ने लाखों रुपये देकर बड़ी-बड़ी खबरें प्रकाशित करवाते रहे । जो लिख कर दिया वही छापा । पाठक नयी तरह की खबरें परहने को मजबूर थे । उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इसे विज्ञापन कहूँ या समाचार । पहले दैनिक जागरण ने पहले लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को गिरवी रखा तो उसका अनुसरण दैनिक हिंदुस्तान ने भी किया, लेकिन इसने थोडी इज्जत बचाकर । क्योंकि इसने एचटी मीडिया एडव लिखा । दैनिक जागरण ने तो ख़बर कि तरह सब्खुच छापा लेकिन लिया मोटी रकम । बेचारे निर्दलीय एवं गरीब प्रत्याशियों देखते ही रह गए । उनकी कौन सुधि लेता है। सबसे ज्यादा जो मुझे झकझोरा वह था मौन छुप्पी । अखबारों के मालिकों के खिलाफ क्यों नहीं आक्रोश हुआ जनता में, क्यों नहीं आन्दोलन हो रहे हैं बिक चुकी मीडिया घरानों के खिलाफ । अखबार क्यों नहीं जलाया जा रहा है । लोकतंत्र को बचाना है तो पत्रकारिता को बचाना होगा । गणेश शंकर विद्यार्थी की पत्रकारिता कहाँ गयी ।