रविवार, 30 जनवरी 2011

विदेशी मीडिया 'जर्मन टीवी' में अप्पन समाचार की कहानी

विदेशी मीडिया 'जर्मन टीवी'  चान्द्केवारी की पगडण्डी पर २७ जनवरी २०११ को पहुंची. तीन सदस्यीय टीम में एआरडी फर्स्ट जर्मन टीवी के साऊथ एशिया प्रोड्यूसर संजय कुमार, कैमरामन मित्या हेगेन लुकेन एवं साउंड रिकोर्डिस्ट दोंती रमेश शामिल हैं.  विदेशी मीडिया की यह टीम २७ जनवरी से ३० जनवरी तक मुजफ्फरपुर में रहकर और दियारा क्षेत्र का धुल फांककर दिन-दिन भर शूट किया. ३१ को वे लोग दिल्ली के लिए रवाना हुए.  

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

उड़ीसा की महिलायें बना रही वृतचित्र

उड़ीसा के कंधमाल स्थित 'जना विकास' संस्था से जुडी ११ आदिवासी महिलायें २१ जनवरी २०११ को मुजफ्फरपुर के पारू प्रखंड स्थित चान्द्केवारी गाँव पहुंची. उनके साथ मानस नायक और मध्य प्रदेश की संस्था संवाद वाहिनी से जुड़े अम्बुज सोनी भी आये. कुल १३ लोगों की टीम अप्पन समाचार के मॉडल को देखने, इस ग्रामीण सामुदायिक चैनल की गतिविधियों को निकट से देखने बिहार आई थीं. २१ जनवरी को मुजफ्फरपुर स्थित कन्हौली खादी भंडार में प्रेस मीट के बाद शाम में पूरी टीम चान्द्केवारी के लिए रवाना हुई. गाँव में दो दिन बिताने के बाद २३ जनवरी को यह टीम उड़ीसा और मध्य प्रदेश के लिए वापस हो गई. इन दो दीनों में दो प्रदेशों की ग्रामीण और जंगलों में रहनेवाली निरक्षर आदिवासी महिलायों का साझा अनुभव बाँटना, मुझे ही नहीं बल्कि चान्द्केवारी के लोगों और अप्पन समाचार से जुडी लड़कियों के लिए भी सुखद और अकल्पनीय रहा. जना विकास से जुडी आदिवासी महिलायों का वृतचित्र सम्बन्धी तकनीकी ज्ञान चौकाने वाली थी. अप्पन समाचार की लड़कियों को उनसे बहुत कुछ सिखाने को मिला. शायद मेहमानों को भी बिहार यात्रा का अनुभव अच्छा ही रहा होगा. दोनों प्रदेशों की अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओँ को एक साथ मिलाने का श्रेय अम्बुज सोनी जी को जाता है. हिंदी और उड़िया भाषा का संगम बिहार के सुदूर इलाके में देखने को मिला. भाषा कोई रुकावट नहीं डाल सकी, भावनायों और संवेदनायों के आगे. सहज भाव से अप्पन समाचार की १२-१५ लड़कियाँ और उड़ीसा की ११ महिलायें एक-दूसरे से ऐसे घुलमिल रही थी, जैसे पहले से एक-दूसरे को जानते हों. नमिता मांझी, कुंतोला नायक, उर्वशी नायक, कुंतोला दिगाल, लिसिमा दिगाल, ममता प्रधान, रुपिना मलिक, निर्मला नायक, संतोरा मलिक,  पुष्पलता, जच्छ्ना परीछा ने तो गाँव के लोगों का दिल जीत लिया.  खाना खाने के बाद में रात को पुआल का अलाव जला कर तापना और हँसी-ठिठोली करना क्या भूल सकता हूँ. बता दें कि बिहार आईं उड़ीसा की महिलायें उन घटनायों की गवाह हैं, जो कंधमाल दंगा के नाम से कुख्यात हुआ था. इनमे से कुछ के घर उजरे तो कुछ के घर जले और कुछ के रिश्तेदार मरे गए. सरकार के दमन और धर्म के ठेकेदारों की प्रताड़ना से उबकर इन महिलायों ने कैमरा थाम लिया. और आज दूसरे प्रदेश में गाँव की महिलायों के काम को देखने पहुँच गई. अंतिम समय में फादर अजय का कार्यक्रम रद्द हो गया, उनके नहीं आने और मुलाकात नहीं होने का मलाल रह गया. इस टीम की सेवा में अप्पन समाचार की टीम लगी रही. मिशन आई के फूलदेव पटेल, अमृतांज इन्दीवर, पंकज सिंह, विजय पाठक आदि लगे रहे. गाँव के लोगों ने चावल, सब्जी, पैसे आदि से सहयोग का ही नतीजा है कि हम अपने मेहमानों का आवभगत कर सके. सभी को तहे दिल से धन्यवाद.    
 
अप्पन समाचार पर वृतचित्र शूट करतीं उड़ीसा की आदिवासी महिलाएं. 

उड़ीसा की आदिवासी महिलायों की टीम पहुंची चान्द्केवारी

प्रभात खबर, २२ जनवरी २०१०

दैनिक जागरण, २२ जनवरी २०१०

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

लड़कियाँ रेडियो से जानेंगी दुनिया का हाल

Founder of Appan Samachar Santosh Sarang presenting radio 
Samiti Sadasya Harendra Kushwaha presenting radio to girls
अप्पन समाचार टीम को नववर्ष पर उपहार स्वरुप रेडियो सेट दिया गया. १९ जनवरी को रामलीला गाछी में एक छोटे से कार्यक्रम के जरिये अप्पन समाचार टीम की ९ लड़कियों को एक-एक रेडियो सेट और परिचय पत्र प्रदान किया गया. यह आयोजन मिशन आई के सौजन्य से आयोजित हुआ. इस अवसर पर मिशन आई के अध्यक्ष व अप्पन समाचार के संस्थापक संतोष सारंग, अप्पन समाचार के वीडियो ट्रेनर राजेश कुमार, मिशन आई के फूलदेव पटेल, चंद्केवारी पंचायत के समिति सदस्य हरेन्द्र कुशवाहा सहित कई लोग मौजूद थे. इस लड़कियों को रेडियो देने का मकसद यह था कि अप्पन समाचार के लिए समाचार इकठ्ठा करने वाली गाँव की लड़कियाँ देश-दुनिया में हो रहे हलचल को आसानी से जान सके और अपने ज्ञान के भंडार को बढ़ा कर अप्पन समाचार के कार्यक्रम में निखार लाये. चूँकि रेडियो संचार का सबसे सस्ता माध्यम हैं, इसलिए रेडियो देने का निर्णय किया गया. सनद रहे कि इस दियारा इलाके में बिजली नहीं होने के कारण आज भी टेलीविजन पर कार्यक्रम देखना महंगा है. इक्का-दुक्का परिवार भाड़े पर बैट्री लेकर रविवार को सिनेमा का लुत्फ़ उठा लेता है. लेकिन सभी के लिए यह संभव नहीं है.
Group photo of Appan Samachar team with the guests
हम यहाँ सुनील कुमार जी के बारे में जिक्र करना मुनासिब समझता हूँ, क्योंकि केरल में इसरो में बतौर वैज्ञानिक अपनी सेवा देते हुए उन्होंने अपनी सैलरी से अप्पन समाचार के लिए ३००० हजार भेजा है. मैंने उनके इस सहयोग से ही इन लड़कियों को रेडियो दे पाया. सुनील जी मुख्यतः मुजफ्फरपुर के ही रहने वाले हैं. उनसे मेरी पहली मुलाकात पटना में दो-तीन साल पहले हुई थी. ऐसे दानवीरों को अप्पन समाचार टीम की ओर से लाख-लाख धन्यवाद्. बिहार की धरती उनके इस सहयोग के किये आभार प्रकट करता है.