रविवार, 18 नवंबर 2012

बसौली पंचायत में शिक्षा का डगमगाता सफर

खुशबू कुमारी
हाल ही में यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में आधे से भी अधिक बच्चे प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं तथा शिक्षा के क्षेत्र में सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्य की गति धीमी है ऐसे में 2015 तक लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन हो जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के करीब 25 करोड़ बच्चे अभी भी पढ़ लिख नहीं पाते हैं जबकि उन्हें चौथी कक्षा तक का ज्ञान प्राप्त हो जाना चाहिए था। यूनिसेफ की इस रिपोर्ट से हमारा देश में भी अछूता नहीं है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू करने के बाद भी देश में शिक्षा के स्तर में कोई संतोषजनक सुधार नहीं हुआ है। अब भी बच्चों की एक बड़ी आबादी प्राथमिक विद्यालय की बात तो दूर स्कूल का मुंह तक नहीं देख पाती है। इनमें लड़कियों की तादाद सबसे अधिक है। कुछ दिनों पूर्व राष्‍ट्रीय शैक्षिक योजना एवं प्रशासन विश्‍वविद्यालय (न्यूपा) द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के बाद यह बात सामने आई कि देश के सभी प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूलों में सुविधाओं का अभाव है। स्कूलों में क्लास रूम, पानी, शौचालय, बेंच और अध्यापकों की भारी कमी है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद अधिकतर स्कूलों में बालिकाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं की जा सकी है। जिसका प्रभाव शिक्षा की गुणवत्ता पर हो रहा है और साक्षरता दर में उम्मीद से कम बढ़ रही है।
देश के जिन राज्यों में राष्‍ट्रीय औसत से कम साक्षरता है उनमें बिहार का नाम सर्वोपरि है। बिहार में साक्षरता की दर 63.8 प्रतिषत है जबकि राष्‍ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत है। हालांकि सर्वशिक्षा अभियान के तहत राज्य में षिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए काफी कदम उठाए गए हैं। लेकिन गति अब भी काफी धीमी है। राज्य के कई जिलों के स्कूलों में छात्रों के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है वहीं षिक्षकों का भी टोटा है। दुनिया भर में लीची के लिए प्रसिद्ध राज्य की अघोषित राजधानी के तौर पर पहचान रखने वाला मुजफ्फरपुर साक्षरता के मामले में राज्य में दूसरा स्थान रखता है। जिले में 72 प्रतिशत पुरूष और 57 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। जो षिक्षा में इसके विकास की गवाही देता है। आंकड़ों के अनुसार जिले में करीब 3659 प्राइमरी, मध्य और उच्च विद्यालय हैं। इनमें 12वीं तक की पढ़ाई कराने वाले स्कूलों की संख्या 110 है। बावजूद इसके कई स्कूलों में छात्रों विशेषकर छात्राओं की उपस्थिती कोई खास उत्साहजनक नहीं है। जिले के कुढ़नी ब्लॉक स्थित बसौली पंचायत में दो प्राथमिक और दो मध्य विद्यालय हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस पंचायत में शिक्षा के प्रति दिलचस्पी बढ़ी है जिसका परिणाम है कि स्कूलों में नामांकन में काफी इजाफा हुआ है। लेकिन वास्तविकता यह है कि नामांकन बढ़ने के पीछे शिक्षा प्राप्त करने से ज्यादा मिड डे मील का प्रभाव है। मध्य विद्यालय बसौली के प्रधानाध्यापक रामनरेश पंडित का कहना है कि विद्यालय में बच्चों की संख्या अवश्‍य बढ़ी है लेकिन इसका कारण शिक्षा के प्रति ललक नहीं बल्कि पोषण और पोशाक है। बच्चे स्कूल तो आते हैं लेकिन दोपहर के भोजन के बाद स्कूल से गायब हो जाते हैं। पाठकों को याद होगा कि मिड डे मील योजना बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए ही शुरू की गई थी ताकि उन्हें पढ़ाई के साथ साथ भोजन भी उपलब्ध हो सके।
हालांकि इसी स्कूल के एक षिक्षक अजय कुमार झा दोपहर के बाद विद्यार्थियों की संख्या में कमी के पीछे छात्रों के प्रति सख्ती नहीं करने के कानून को जिम्मेदार मानते हैं। उनका कहना है कि छड़ी नहीं उठाना स्वंय बच्चों के लिए अभिशाप बनता जा रहा है। उनके प्रति सख्ती नहीं करने का आदेश बालमन को उद्दंड बनाता जा रहा है। हालांकि समय समय पर शिक्षक अपनी तरफ से बच्चों को काफी कुछ नैतिकता का पाठ पढ़ाने की कोषिष करते रहते हैं यही कारण है कि स्कूल के अधिकतर बच्चों को भारतीय संविधान का प्रस्तावना कंठस्थ है। इसके अतिरिक्त जमीन नहीं होने के कारण भवन निर्माण में बाधा भी एक बड़ी समस्या है। स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई होती है लेकिन कमरे केवल चार हैं। ऐसे में बच्चों को खुले आसमान के नीचे ही पढ़ाई करनी होती है। जाड़े और बारिश के मौसम में उन्हें काफी असुविधा उठानी पड़ती है। कई बार पढ़ाई को बीच में रोकना पड़ता है। शिक्षिका ललीता कुमारी का कहना है कि स्कूल में शौचालय की व्यवस्था सही नहीं होने के कारण न सिर्फ छात्राओं बल्कि महिला शिक्षिकाओं को भी असुविधा का सामना करना पड़ता है। जो सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है जिसमें कोर्ट ने देश के सभी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था का आदेश दिया है। इस संबंध में एक अभिभावक कौशल किशोर सिंह का कहना है कि स्कूल में शौचालय की व्यवस्था नहीं होने और अन्य कमियों के कारण ही सरकारी स्कूलों से माता-पिता का मोहभंग हो रहा है और वह महंगी फीस देकर अपने बच्चों को निजी विद्यालय में भेजना ज्यादा पसंद करते हैं। इस संबंध में सरकारी पक्ष जानने के लिए कई कोशिशों के बाद भी प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी से संपर्क नहीं हो सका। इस संबंध में कृष्‍णदेव कहते हैं कि शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए योग्य शिक्षकों की जरूरत होती है। इस वक्त जिले में शिक्षकों के करीब दस हजार पद खाली हैं। शिक्षाविद श्रीमती शमीमा शब्बीर छात्रों में शिक्षा के प्रति अरूचि के लिए अभिभावकों को जिम्मेदार मानती हैं। उनका कहना है कि परिवार में सदस्यों की बड़ी संख्या इस विचार को जन्म देती है कि ज्यादा हाथ ज्यादा कमाने का साधन है। जबकि छोटा परिवार सुखी परिवार की संकल्पना से बिहार अभी भी अभिनज्ञ हैं।
संसद के पिछले शीतकालीन सत्र में स्वंय सरकार लोकसभा में यह मान चुकी है कि सर्वशिक्षा अभियान के तहत पिछले 10 सालों में शिक्षकों के स्वीकृत पदों में अभी तक छह लाख 87 हजार पद भरे नहीं जा सके हैं। इनमें बिहार में अकेले सबसे अधिक दो लाख पद रिक्त थे। हालांकि वर्तमान राज्य सरकार इसकी कमी को पूरा करने के लिए नियोजित शिक्षकों की बहाली कर रही है लेकिन उसकी क्या स्थिती है यह किसी से छुपा नहीं है। प्रश्‍न उठता है कि शिक्षा जो किसी भी सभ्य समाज के लिए महत्वपूर्ण है और जिसे मौलिक अधिकार की श्रेणी में रखा गया है उसे धरातल पर उतारने में इतनी बेरूखी क्यूं की जा रही है? उच्च षिक्षण संस्थान को उन्नत बनाने का सरकार का प्रयास सराहनीय है लेकिन जब बुनियादी शिक्षा ही कमजोर होगी तो हमे सफलता की आशा करना बेमानी होगा।

रविवार, 4 नवंबर 2012

Appan Samachar means K for Camera

 
Al Jazeera has selected a film on APPAN SAMACHAR in it's first ever filmmaker's workshop in Asia. This workshop was held in Busan, South Korea. They selected 10 filmmakers from Asia to develop the subject with the Al Jazeera team and Asian Network of Documentary. Kumud Ranjan, a documentary filmmaker from Patna has been also selected for the workshop alongwith 9 other participants from Asia. Kumud's film's subject is APPAN SAMACHAR and it was very well appreciated during the workshop by international experts. Kumud Ranjan has made several documentary films. His film on dashrath Manjhi- "The Man Who Moved The Mountain" was screened at Mumbai Int'l Film Festival, Kerla Int' Film Festival 2012, as well as others. Kumud is now preparing to make the film on APPAN SAMACHAR.



Documentary Film Director Kumud Ranjan in Busan

Al Jazeera and Asian Network of Documentary are pleased to announce the final 10 filmmakers and their proposals selected for the inaugural Viewfinder Asia project. The filmmakers are invited to attend a week long intensive documentary workshop in Busan, South Korea, from 30th September to 6th October 2012 where they will develop their documentaries for potential broadcast on Al Jazeera in 2013.
More than 200 wonderful and diverse proposals were received from across Asia for the Viewfinder Asia Open Call.
The final selection was based on the strength of the stories, compelling character led narratives and the observational documentary style displayed by the filmmakers who are keen to develop their storytelling skills further.
The stories cover a young man’s quest for freedom, a father dealing with loss in his fight for justice, a couple in crisis as they approach their 60th wedding anniversary, a teenager’s pursuit to report news in her remote village, a son who questions centuries of family tradition, the lure of the criminal underworld, the dream of music, a failing education system, the financial operations of a slum, and a murderous real estate market.
These are the 10 proposals, the filmmakers and the country in which the story is set:-
Zekria’s Story, Elissa Bogos – Afghanistan
Almost Famous, Vincent Du – China
A Class of their Own, Haryun Kim – China
House Hunt, Shashwati Talukdar – India
K for Camera, Kumud Ranjan – India
Monk by Blood, Bao Nguyen – Japan
Ivan the Undertaker, Bianca Balbuena – Philippines
Empire of Shame, LiGiyeong Hong – South Korea
My Father, My Mother, Taiwan, Maso Chen – Taiwan
Granny Loan Shark, Shane Bunnag – Thailand


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Finalists announced for 2012 workshop

PRESS RELEASE : Al Jazeera and Asian Network of Documentary announce the finalists for the inaugural Viewfinder Asia workshop.

Appan Samachar covered Former President Dr. APJ Abdul Kalam


Story on a Youth Farmer & Cultural Programme