मोहन वीणा के सृजक एवं ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित पंडित विश्वमोहन भट्ट आज की तारीख में संगीत के आकाश में देदीप्यमान तारे की तरह हैं। विश्वविख्यात भट्ट साहब ने शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ हॉलीवुड की मूवीज में भी अपना संगीत दिया है। नुसरत फतह अली खान के साथ हालीवुड की फ़िल्म 'डेडमैन वाकिंग' के अलावा ' टू डेज इन वैली' में भी संगीत दिया है। एक अमरीकन प्रोड्यूसर की अभी हाल में रिलीज मूवी 'इम्पटी स्ट्रीट' को भी भट्ट साहब ने अपनी मधुर संगीत से सजाया है। आजकल पंडित विश्व मोहन भट्ट अपनी पेशकश के सिलसिले में गुवाहाटी में हैं। यहाँ प्रस्तुत है श्री भट्ट की संतोष सारंग के साथ हुई विस्तृत बातचीत का मुख्य अंश :-
पंडित विश्व मोहन भट्ट और मोहन वीणा में मोहन शब्द कॉमन है। मोहन का क्या तात्पर्य है?
- मुझे लगा कि यदि मेरी कल्पना, मेरा इजाद मेरे नाम से जाना जाय तो अच्छा होगा। इसलिए जब मैंने बीस तार वाले इस साज की खोज की तो इसका नाम अपने नाम मोहन के साथ जोड़कर मोहन वीणा रखा। सन १९६७ में मैंने इस साज को शुरू किया। आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मुझे एहसास हुआ कि कोई साज ऐसा हो जिसमें इमोशन, रोमांच, मधुरता, निरंतरता यानी सभी चीजों का समावेश हो। इस साज की विशेषता है कि इसकी ध्वनि की निरंतरता देर तक जारी रहती है। सितार, सरोद आदि वाद्य यंत्र एक स्ट्रोक के बाद बंद हो जाती है, जबकि मोहन वीणा से एक स्ट्रोक में ही गायकी निकलती है।
वीणा और मोहन वीणा में अन्तर क्या है?
- वीणा कई प्रकार की होती है। लेकिन आकार लगभग सबका समान होता है। मैंने मोहन वीणा के साथ वीणा इसलिए जोड़ा क्योंकि इसका आकार भी बहुत कुछ वीणा और विचित्र वीणा से मिलता है। दक्षिण के वाद्य यंत्र गो तू वाद्यम के आकार से भी यह साज मिलता-जुलता है।
'ऐ मीटिंग बाई दी रिवर' के लिए आपको ग्रैमी अवार्ड मिला। इस एलबम की क्या खासियत है?
- इसमें फ्यूजन म्यूजिक है, जो लाजबाव बना है।
सेल्युलाइड की दुनिया में, जहाँ पश्चिमी संगीत हावी होता जा रहा है। इस परिस्थिति में आप शास्त्रीय संगीत को कहाँ पाते हैं?
- मैं वेस्टर्न म्यूजिक को क्लासिकल म्यूजिक का प्रतिस्पर्धी नहीं मानता हूँ। वो अपनी जगह ठीक है और यह अपनी जगह ठीक है। हाँ, यह जरूर है की युवायों का झुकाव ही क्यों हम जैसे लोगों का भी रुझान उस तरफ़ बढ़ा है। लोगों को अच्छी चीजें अच्छी नहीं लगती है। बुरी चीजें अच्छी लगती है। वैसे, मैं नहीं मानता की पश्चिमी संगीत ख़राब है। उनका म्यूजिक भी अच्छा है। लेकिन यहाँ के लोग सीन को न्यूड बना कर पेश करते हैं, जिस वजह से लगता है की वेस्टर्न म्यूजिक ख़राब है। वहां के लोग ईमानदार हैं, सिस्टमेटिक हैं। हम वहां के म्यूजिक व मूवी को ग़लत तरीके से पेश करते हैं।
आप किस घराने से ताल्लुक रखते हैं?
- मैं मध्य प्रदेश के मैहर घराने से हूँ। विश्वविख्यात सितारवादक पंडित रविशंकर का शागिर्द हूँ। मेरे बड़े भाई शशि मोहन भट्ट उनके पहले शागिर्द हैं। पंडित रविशंकर उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब के शागिर्द रहे हैं। वैसे, मैं अपने परिवार की सातवीं पीढी हूँ, जिसने संगीत कला की साधना में रत है। मेरा परिवार संयुक्त परिवार है। यह संगीत की ताकत से ही सम्भव हुआ है। मुझे गीत-संगीत विरासत में मिली है। तीन सौ साल की लम्बी संगीत परम्परा है, मेरे परिवार की। मैंने सितार से शुरू किया फिर अपनी कल्पना को मोहन वीणा के रूप में लाया। गुरु एक वृहत रूप होता है। गुरु बिना ज्ञान सम्भव नहीं है।
किसी राग का नाम बताएं, जिसे आपने कम्पोज किया है।
- हाँ, मैंने मधुवंती राग और शिवरंजनी राग को मिलाकर राग विश्वरंजनी बनाया है। देश की ५० वीं स्वतंत्रा दिवस पर मैंने राग गंगा का कम्पोजीशन किया। मैंने राग के क्रियेशन में विश्वास नहीं करता। जो कहता है की मैंने राग की खोज की है, वह खोज नहीं नक़ल है। जो नक़ल करने में विश्वास करते हैं, वे बहुत आगे तक नहीं जाते। मैं ख़ुद नहीं जानता की आज क्या पेश करना है। जिस क्षण मैं वाद्य यंत्र पकड़ता हूँ तो नई-नई चीजें स्वयं उँगलियों पर आ जाती हैं। कोई भी चीज पूर्व नियोजित नहीं होता, पहले से तैयारी नहीं रहती है। कई बड़े उस्तादों के शागिर्दों ने उन्हीं की नक़ल की और वे पीछे रह गये।
आप अपने देश और विदेश के संगीत प्रेमियों में क्या फर्क पाते हैं?
- मैंने अब तक ३५ देशों के लगभग सात सौ शहरों में कंसर्ट किए हैं। अरिम कलेपटन ने अभी अमरीका बुलाया था। कार्यक्रम में लगभग एक लाख संगीत श्रोतायों की भीड़ थी, जिसमें अधिकाँश अमेरिकी थे। इंडियन क्लासिकल सोसायटी के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में ६० प्रतिशत भारतीय और ४० प्रतिशत गोरे लोग सुनने आए थे। मैंने महसूस किया की विदेशों के श्रोतायों में क्लासिकल म्यूजिक के प्रति काफ़ी समझ है। अपने देश में पुणे के श्रोता काफ़ी समझ रखते हैं शास्त्रीय संगीत की।
पूर्वोत्तर के संगीतप्रेमियों के बारे में क्या राय है?
- भाई, यहाँ के श्रोता तो कमाल के हैं। यहाँ पहले भी कई कार्यक्रम पेश कर चुका हूँ। लोग काफ़ी संख्या में मुझे सुनने आते हैं।
युवा संगीत प्रेमियों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
- युवाओं को हम यही कहेंगे की वे अपनी संस्कृति, अपनी विरासत और अपने संगीत को बचाए रखें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें