मार्च माह में हुई असमय बारिश से फसलों को इतना नुकसान हुआ है कि पूरे देश से किसान आत्महत्या की खबरें आ रही हैं. दूसरों के लिए अनाज उत्पन्न करने वाला अन्नदाता आज खुद अन्न को तरस रहा है. मोदी सरकार के लिए इंटेलीजेंस ब्यूरों ने दिसंबर में kकिसानों की खुदकुशी के मामलों की बाढ़l नाम से एक रिपोर्ट लिखी थी. रिपोर्ट में गुजरात, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडू में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाओं के अलावा महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और पंजाब में ऐसे मामलों के बढ़ने की बात कही गयी थी. रिपोर्ट में डांवाडोल मॉनसून, बढ़ते ऋण, फसल की कम कीमत पर ख़रीद और फसलों की लगातार नाकामी को किसानों की खुदकुशी के लिए जि़म्मेदार बताया गया है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. वर्ष 2012 में 13,754 किसानों ने विभिन्न वजहों से आत्महत्या की थी और 2013 में 11,744 ने. एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है यानि अन्नदाता की भूमिका निभाने वाला किसान अब अपनी जान भी बचाने में असमर्थ है. वर्ष 2014 में भी आत्महत्या की दर में तेजी आई है. 2015 में मार्च के महीने में असमय बारिश के कारण फसल बर्बाद हो गयी है. किसानों को भारी हुआ है. आय का कोई साधन और परिवार का बोझ उठाने में असमर्थ किसान आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं. देश के किसी न किसी कोने से हर रोज़ किसी न किसी किसान की आत्महत्या की खबर मिल रही है.
बिहार में सीमावर्ती क्षेत्नों में आए विनाशकारी तूफान से फसलों की चैतरफा बर्बादी हुई है. पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, किटहार, मधुबनी व दरभंगा में गेहूं व दाल (मुंग) की बर्बादी से रोटी व दाल पर भी आफत पड़ने का अनुमान है। अब तक डेढ़ लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर लगी फसल की बर्बादी का आकलन है व 100 करोड़ से अधिक की क्षति बतायी जा रही है. इस पहले मार्च माह में हुई असमय बारिश का नुकसान किसान पहले ही उठा चुके हैं. अप्रैल का महीना गेहूं की फसल की कटाई का होता है. पर बिहार में असमय बारिश और तूफान फसलों को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाया है. इस बारे में बिहार के मुज़फ्फरपुर जि़ले के किसान जयकिशोर राउत कहते हैं कि kवैसे भी छोटे किसानों के लिए खेती में अब कुछ नहीं बचा है और इस साल इन्द्रदेव भगवान भी हमसे नाराज़ हैं. कटाई के समय असमय बारिश ने किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. राज्य के किसान सरकार से मुआवज़े की आस लगाए बैठे हैं. सरकार की ओर से कुछ लोगों को तो मुआवज़ा मिला है, लेकिन अभी भी बड़ी तादाद में किसान मुआवज़े से वंचित हैं. अब तक किसानों को 50 प्रतिशत फसल के नुकसान पर ही मुआवज़े का प्रावधान था. किसानों को केवल बड़ी फसल की बर्बादी पर ही मुआवज़ा मिलता था. लेकिन इस साल किसानों की खराब होती आर्थिक स्थिति को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने एक तिहाई फसल के बर्बाद होने पर मुआवज़े का एलान करते हुए किसानों को दी जाने वाली मुआवज़े की राशि में दोगुनी से भी अधिक की वृद्धि कर दी है. राज्य में 50 प्रतिशत क्षति के आधार पर 836 करोड़ रुपये मुआवज़ा देने का निर्णय किया था, लेकिन केंद्र के नये निर्देश के बाद मुआवज़े की राशि में दोगुनी वृद्धि हो गयी है. इससे पहले बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने केंद्र सरकार को 25 प्रतिशत फसलों की क्षति पर ही मुआवज़ा देने और मुआवज़े की राशि चार गुनी करने का प्रस्वात भेजा था. कंेद्र सरकार की ओर 37 जि़लों के 19.92 लाख किसानों को 1764 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गयी है.
इस बारे में राकेश कुमार का कहना है कि- kमैंने 3 एकड़ ज़मीन में गेहूं की खेती की थी. फसल पर मैंने जितना खर्च किया था उसकी आधी भी उपज नहीं हुई. मैंने फसल मुआवज़े के लिए आवेदन दे दिया है. मुआवज़े से हमें थोड़ी बहुत राहत ज़रूर मिलेगी, लेकिन इससे हमारे परिवार के खर्चे भी नहीं निकल पाएंगे. इस साल अपने परिवार का भरण-पोषण करने को लेकर बहुत चिंता है. यह स्थिति सिर्फमेरी नहीं हैं. •यादातर छोटे किसानों की कमोवेश यही स्थिति है.l वहीं किसान रामनाथ गुप्ता का कहना है कि- kकृषि अधिकारी एसी में बैठकर किसानों के लिए नीति बनाते हैं. किसानों का दर्द क्या होता है इसे जानने के लिए वह एक बार खेत में आकर देखें? फसल की क्षति का थोड़ा बहुत मुआवज़ा मिलने से किसानों की दिनों-ब-दिन बिगड़ती हालत ठीक नहीं होनेवाली है. इसके लिए कोई स्थायी हल खोजना होगा. किसानों के हितों को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी. आज देश में किसान सबसे •यादा परेशान हैं. किसानों की स्थिति के बारे में किसान नंदकिशोर कहते हैं कि-पहले किसान राजा था, लेकिन आज कर्ज में डूबकर भीखमंगा हो गया है. किसान कर्ज लेकर फसल उगाता है. अगर फसल अच्छी हुई भी तो •यादा से •यादा फसल बेचकर वह सिर्फकर्ज ही चूकता कर सकता है. छोटे किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. किसान होना आज गरीब होने का प्रतीक बन गया है. खाद, बीज, सिंचाई सब महंगा हो गया है. किसान जब तक नहीं फल-फूल सकता, जब तक उसके फसल का दाम उसकी लगात के अनुसार तय नहीं किया जाएगा.
हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है. पर यहां किसानों की स्थिति सबसे •यादा खराब है. कृषि क्षेत्न डूब रहा है. किसान खेती छोड़ रहे हैं और जीवन भी. गेहूं के अलावा चना, सरसों और अरहर की फसलों को बड़ा नुकसान हुआ है. ये फसलें कटने को तैयार खड़ी थी कि बारिश व आंधी-तूफान ने सारी फसलें स्वाहा कर दिया. पिछले साल बारिश नहीं हुई थी, इसलिए खरीफ की फसल चौपट हुई थी. अब रही-सही कसर मार्च की बारिश ने पूरी कर दी. जानकार कहते हैं कि सरकार को संकट की इस घड़ी में किसानों के आंसुओं को पोंछना होगा. यह देश की बदनसीबी है कि रबी के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्न मौसम की मार चौपट हो गया. इसका खामियाजा सिर्फकिसान को ही नहीं भुगतना पड़ेगा, वरन शहरी मध्यवर्ग भी खाद्यान्नों की बढ़ी कीमतों के लिए और भुगतान को तैयार रहे
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, वर्ष 1995 से 2013 के बीच तीन लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं. वर्ष 2012 में 13,754 किसानों ने विभिन्न वजहों से आत्महत्या की थी और 2013 में 11,744 ने. एक अनुमान के मुताबिक, देश में हर 30 मिनट में एक किसान आत्महत्या करता है यानि अन्नदाता की भूमिका निभाने वाला किसान अब अपनी जान भी बचाने में असमर्थ है. वर्ष 2014 में भी आत्महत्या की दर में तेजी आई है. 2015 में मार्च के महीने में असमय बारिश के कारण फसल बर्बाद हो गयी है. किसानों को भारी हुआ है. आय का कोई साधन और परिवार का बोझ उठाने में असमर्थ किसान आत्महत्या का रास्ता अपना रहे हैं. देश के किसी न किसी कोने से हर रोज़ किसी न किसी किसान की आत्महत्या की खबर मिल रही है.
बिहार में सीमावर्ती क्षेत्नों में आए विनाशकारी तूफान से फसलों की चैतरफा बर्बादी हुई है. पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, किटहार, मधुबनी व दरभंगा में गेहूं व दाल (मुंग) की बर्बादी से रोटी व दाल पर भी आफत पड़ने का अनुमान है। अब तक डेढ़ लाख हेक्टेयर से अधिक जमीन पर लगी फसल की बर्बादी का आकलन है व 100 करोड़ से अधिक की क्षति बतायी जा रही है. इस पहले मार्च माह में हुई असमय बारिश का नुकसान किसान पहले ही उठा चुके हैं. अप्रैल का महीना गेहूं की फसल की कटाई का होता है. पर बिहार में असमय बारिश और तूफान फसलों को ज़बरदस्त नुकसान पहुंचाया है. इस बारे में बिहार के मुज़फ्फरपुर जि़ले के किसान जयकिशोर राउत कहते हैं कि kवैसे भी छोटे किसानों के लिए खेती में अब कुछ नहीं बचा है और इस साल इन्द्रदेव भगवान भी हमसे नाराज़ हैं. कटाई के समय असमय बारिश ने किसानों को बहुत नुकसान पहुंचाया है. राज्य के किसान सरकार से मुआवज़े की आस लगाए बैठे हैं. सरकार की ओर से कुछ लोगों को तो मुआवज़ा मिला है, लेकिन अभी भी बड़ी तादाद में किसान मुआवज़े से वंचित हैं. अब तक किसानों को 50 प्रतिशत फसल के नुकसान पर ही मुआवज़े का प्रावधान था. किसानों को केवल बड़ी फसल की बर्बादी पर ही मुआवज़ा मिलता था. लेकिन इस साल किसानों की खराब होती आर्थिक स्थिति को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार ने एक तिहाई फसल के बर्बाद होने पर मुआवज़े का एलान करते हुए किसानों को दी जाने वाली मुआवज़े की राशि में दोगुनी से भी अधिक की वृद्धि कर दी है. राज्य में 50 प्रतिशत क्षति के आधार पर 836 करोड़ रुपये मुआवज़ा देने का निर्णय किया था, लेकिन केंद्र के नये निर्देश के बाद मुआवज़े की राशि में दोगुनी वृद्धि हो गयी है. इससे पहले बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने केंद्र सरकार को 25 प्रतिशत फसलों की क्षति पर ही मुआवज़ा देने और मुआवज़े की राशि चार गुनी करने का प्रस्वात भेजा था. कंेद्र सरकार की ओर 37 जि़लों के 19.92 लाख किसानों को 1764 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गयी है.
इस बारे में राकेश कुमार का कहना है कि- kमैंने 3 एकड़ ज़मीन में गेहूं की खेती की थी. फसल पर मैंने जितना खर्च किया था उसकी आधी भी उपज नहीं हुई. मैंने फसल मुआवज़े के लिए आवेदन दे दिया है. मुआवज़े से हमें थोड़ी बहुत राहत ज़रूर मिलेगी, लेकिन इससे हमारे परिवार के खर्चे भी नहीं निकल पाएंगे. इस साल अपने परिवार का भरण-पोषण करने को लेकर बहुत चिंता है. यह स्थिति सिर्फमेरी नहीं हैं. •यादातर छोटे किसानों की कमोवेश यही स्थिति है.l वहीं किसान रामनाथ गुप्ता का कहना है कि- kकृषि अधिकारी एसी में बैठकर किसानों के लिए नीति बनाते हैं. किसानों का दर्द क्या होता है इसे जानने के लिए वह एक बार खेत में आकर देखें? फसल की क्षति का थोड़ा बहुत मुआवज़ा मिलने से किसानों की दिनों-ब-दिन बिगड़ती हालत ठीक नहीं होनेवाली है. इसके लिए कोई स्थायी हल खोजना होगा. किसानों के हितों को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी. आज देश में किसान सबसे •यादा परेशान हैं. किसानों की स्थिति के बारे में किसान नंदकिशोर कहते हैं कि-पहले किसान राजा था, लेकिन आज कर्ज में डूबकर भीखमंगा हो गया है. किसान कर्ज लेकर फसल उगाता है. अगर फसल अच्छी हुई भी तो •यादा से •यादा फसल बेचकर वह सिर्फकर्ज ही चूकता कर सकता है. छोटे किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है. किसान होना आज गरीब होने का प्रतीक बन गया है. खाद, बीज, सिंचाई सब महंगा हो गया है. किसान जब तक नहीं फल-फूल सकता, जब तक उसके फसल का दाम उसकी लगात के अनुसार तय नहीं किया जाएगा.
हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है. पर यहां किसानों की स्थिति सबसे •यादा खराब है. कृषि क्षेत्न डूब रहा है. किसान खेती छोड़ रहे हैं और जीवन भी. गेहूं के अलावा चना, सरसों और अरहर की फसलों को बड़ा नुकसान हुआ है. ये फसलें कटने को तैयार खड़ी थी कि बारिश व आंधी-तूफान ने सारी फसलें स्वाहा कर दिया. पिछले साल बारिश नहीं हुई थी, इसलिए खरीफ की फसल चौपट हुई थी. अब रही-सही कसर मार्च की बारिश ने पूरी कर दी. जानकार कहते हैं कि सरकार को संकट की इस घड़ी में किसानों के आंसुओं को पोंछना होगा. यह देश की बदनसीबी है कि रबी के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्न मौसम की मार चौपट हो गया. इसका खामियाजा सिर्फकिसान को ही नहीं भुगतना पड़ेगा, वरन शहरी मध्यवर्ग भी खाद्यान्नों की बढ़ी कीमतों के लिए और भुगतान को तैयार रहे
- खुशबू कुमारी