- संतोष सारंग
इस साल फरवरी, मार्च व अप्रैल महीने में बिहार के विभिन्न जिलों में कई बार बारिश, आंधी-तूफान व ओलावृष्टि का कहर बरपा। असमय बारिश व ओलावृष्टि से केवल मार्च में 37 जिलों में 35,9,762 हेक्टेयर में लगी रबी की फसल बर्बाद हो गयी। किसानों के जख्म भरे भी नहीं थे कि 21 अप्रैल की रात राज्य के 12 जिलों में अचानक आये आंधी-तूफान व ओलावृष्टि ने किसानों का तबाह कर दिया। 80 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से आये चक्रवात तूफान ‘स्क्वाल’ ने पूर्णिया में 30 मिनट तक तबाही मचायी। पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, सुपौल, सहरसा, भागलपुर, किशनगंज, मुंगेर, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी में आये चक्रवाती तूफान ने जान-माल को भारी क्षति पहुंचाई। सबसे अधिक पूर्णिया में डेढ़ लाख लोग प्रभावित हुए। प्रभावित जिलों में 50 से अधिक लोग मारे गये एवं 350 से अधिक लोग घायल हए। सैकड़ों घर ध्वस्त हो गये। मानो गरीबों व किसानों के सबकुछ तहस-नहस हो गया। कोठी छोड़ दीजिये, मुट्ठी भर अनाज भी किसान खेतों से बटोर कर नहीं ला पायेंगे।
प्रदेश के कृषि विभाग ने फसल क्षति का जो आकलन किया है, उसके मुताबिक प्रभावित जिलों में 31 लाख 89 हजार 144 हेक्टेयर में खड़ी फसल में 13 लाख 93 हजार 762 हेक्टेयर में 33 प्रतिशत से अधिक की क्षति हुई है। करीब 19.92 लाख किसान पीडि़त हुए हैं। लिहाजा, राज्य सरकार ने तूफान प्रभावित जिलों में जिनके घर ध्वस्त हुए हैं, उनको अनुदान के रूप में 5800 रुपये व एक क्विंटल अनाज देने क घोषणा की है। उधर, संसद में बिहार की तबाह की गूंज सुनायी दी। एक स्वर से बिहार के सांसदों ने इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की। यह सब फौरी तौर पर राहत देनेवाली बात है, लेकिन बर्बाद हुए किसानों को संकट से उबारने के लिए एक ठोस नीति की जरूरत होगी। क्योंकि पहले से ही यहां के किसानों की किस्मत धान का सरकारी कीमत नहीं मिलने एवं पैक्सों, एसएफसी गोदामों व मिलरों के पेच में फंसकर खराब हो गयी है। कृषि रोडमैप का भी लाभ कुछ बडे किसान ही उठा पा रहे हैं।
आज किसान संकट में हैं। बिहार के किसानों की हालत महाराष्ट्र के किसानों जैसी न हो जाये। वे आत्महत्या को मजबूर न हों, इसके पहले ही कदम उठाने होंगे। सरकार से बड़ी जिम्मवारी नागरिकों की है। प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा हम लगातार भुगत रहे हैं। ग्लोबल वाॅर्मिंग व क्लाइमेट चेंट का सबसे ज्यादा असर फसलों पर देखा जा रहा है। किसानी बचानी है तो मुआवजे के तिनके का सहारा नहीं चलेगा। किसान को भी पर्यावरणप्रेमी बनना होगा।
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