शनिवार, 9 मई 2015

स्टारडम मिला, जीने का साधन नहीं

  • संतोष सारंग
साधारण परिवार में पैदा हुए मोतिहारी के हनुमानगढ़ी मुहल्ले के सुशील कुमार ने सामान्य ज्ञान के बल पर 2011 में केबीसी सीजन पांच के विजेता बनकर यह साबित कर दिया कि प्रतिभा किसी चीज की मोहताज नहीं होती। अभाव व मुफलिसी में भी इतिहास रचा जा सकता है। बेतिया के चनपटिया प्रखंड में मनरेगा में कंप्यूटर आॅपरेटर की अनुबंध पर 2007 में नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही वे ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जीतने के लिए जेनरल नाॅलेज की तैयारी में जुट गये। गणित व अंगरेजी में कमजोर रहने के कारण एसएससी, बैंक, रेलवे में नौकरी नहीं मिल रही थी। सेंट्रल पुलिस फोर्स के असिस्टेंट कमांडर की परीक्षा में भी बैठा। इंटरव्यू तक गये, लेकिन निराशा हाथ लगी। कई प्रतियोगी परीक्षाओं का पीटी पास किया, लेकिन आगे असफल रहे। यही सोचकर केबीसी की तैयारी में जुट गये। और अंततः केबीसी का पांच करोड़ जीत ही लिया। इस बेहतरीन कामयाबी के बाद चंपारण के इस छोरे की झोली में ढेर सारी खुशियां समा गयीं। टैक्स वगैरह काटकर साढ़े तीन करोड़ मिले। सुशील इन पैसों से सबसे पहले घर बनाया। भाइयों को आर्थिक सहयोग देकर बिजनेस शुरू कराया। चार भाई मिलकर डेयरी फाॅर्म, ज्वेलरी की दुकान एवं इलेक्ट्रानिक पाट्र्स की दुकान चला रहे हैं। समय मिलने पर सुशील खुद भाई के कारोबार में मदद करते हैं। सुशील कहते हैं कि बीच में लोगों ने अफवाह फैला दिया था कि केबीसी से मिले सारे पैसे खत्म हो गये। लेकिन ऐसा नहीं है। मैंने जमीन व कारोबार में पैसे इन्वेस्ट किये हैं। इन्हीं पैसों से इस साल जनवरी में मोतिहारी के नक्सल प्रभावित पकड़ीदयाल के सिरहा पंचायत के 40 गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए गोद लिया है। स्कूल फीस, किताबों आदि पर खर्च कर रहे हैं। मित्र मुन्ना, स्थानीय लोग व मुखिया भी मदद कर रहे हैं। शीघ्र एक पुस्तकालय खोलने जा रहा हूं।      
स्टारडम मिलने के बाद भी सुशील को लगता है कि जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं कर सका। वे कहते हैं कि सेलेब्रिटी बनने के बाद बधाइयां तो मिलती रहीं, लेकिन जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिला। आज भी लोग मिलने आते हैं और बधाइयां देते हैं। लेकिन इसका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। कैरियर संवारने का समय नहीं मिलता है। 2011 में केबीसी सीजन 5 जीतने के बाद प्लान किया था कि अब सिविल सर्विसेज की तैयारी करूंगा। 2012 में दिल्ली गये। छह महीने रहकर आइएएस की तैयारी में लगे। सेलेब्रिटी के कारण घर पर रोज कोई न कोई मिलने चले आते थे। बिना मिले लौटा भी नहीं सकते थे। उन्हें बुरा लगता। उसी में समय निकल जाता था। कोचिंग भी ज्वाइन नहीं कर सका, यही सोच कर कि घर पर मिलनेवालों का तांता लगा रहता है, तो कोचिंग में क्या होगा। सभी समझते थे कि मैं पढ़ने में बहुत तेज हूं। मगर जेनरल नाॅलेज छोड़कर गणित-अंग्रेजी में कमजोर हूं। यही सोचकर संकोच होने लगा। मैं आइएएस बनने का सपना छोड़कर छह महीने में ही घर लौट गया।
वे कहते हैं कि कोई एचीवमेंट नहीं मिलने से शर्मिंदगी महसूस होती है। केबीसी हाॅटसीट पर बैठकर भले पांच करोड़ जीत लिया। कुछ दिनों तक किस्मत बुलंदियों पर रहा। केबीसी के बाद कलर्स चैनल पर प्रसारित ‘झलक दिखला जा’ में भी भाग लिया। कल्पना में भी नहीं सोचा था कि जीवन में कभी डांस करूंगा। डांस का क, ख, ग भी नहीं आता था। लेकिन सोचा आॅफर मिला है तो देखते हैं किस्मत आजमाकर। दो-तीन महीने मुंबई में रहे। करीब 10 लाख रुपये मिले। वहां मेरे लिए एडजस्ट करना मुश्किल था। सो, फिर बिहार लौट गया। मनरेगा का भी ब्रांड एम्बेस्डर बना। आइडिया का विज्ञापन किया। लेकिन बहुत पैसे नहीं मिले। वे कहते हैं कि हम प्रोफेशनल नहीं बन पाये, इसलिए ब्रेक मिलने के बाद भी बहुत लाभ नहीं मिल पाया। फिलवक्त सुशील मोतिहारी में ही समय बीता रहे हैं। नौकरी की तलाश में हैं।
सुशील बताते हैं कि 2008 में बिहार विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान विषय में एमए किया। बीच में पढ़ाई रुक गयी थी। फिलहाल मैं बीएड कर रहा हूं। बिहार विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में एमफिल में नामांकन कराया है। नेट की तैयारी में लगा हूं। कैरियर को ले अब मुझे कोई उलझन नहीं है। आगे शिक्षा के क्षेत्र में ही कुछ करना है। लेक्चरर बनूं या प्राथमिक स्कूल का शिक्षक, अब पढ़ाने का ही काम करूंगा। ज्ञान बांटूंगा, क्योंकि समाज का उत्थान शिक्षा, संस्कृति व संस्कार को बढ़ावा देने से ही हो सकता है। समाज में गुरु का स्थान देवता से भी ऊपर है।

कोई टिप्पणी नहीं: