रविवार, 25 जुलाई 2010

जनसरोकार की खबरें अब बीते दिनों की बात

 ननकी चाचा ने अपनी मेहनत से बदली गाँव की तस्वीर, बुधिया की बेटी के हाथ में खुरपी के बदले अब कलम. अपने सखियों के संग ममता कर रही बचत, जैसी खबरें तथाकथित बड़े अखबार के पाठकों के लिए बीते दिनों की बातें होती जा रही हैं. अब इसके बदले छपती हैं बिकनी पहनकर सड़क पर दौड़ लगाने वाली बालाओं की तस्वीरें व खबरें. कंधे पर हाथ डालकर एक-दूसरे को किस करती जोड़े की तस्वीरें. बड़े अखबार के दफ्तर में जब खबरें आती हैं तो अधिकारी पूछते हैं कि पहले उसका प्रोफाइल बताओ. चेहरा सुन्दर है कि नहीं. खबर विज्ञापनदाताओं के खिलाफ तो नहीं है. इन सवालों के जवाब से संतुष्ट होने के बाद ही मिलती है जगह. अगर गाँव के दुखिया या बेबस आदमी की खबर है तो वह शायद ही प्रमुखता से जगह लें. खबरों की संवेदन्शीलता तथा महत्व के प्रति बदलते नजरिये के इस दौर में अब लघु पत्र-पत्रिकाओं की जवाबदेही बढ़ी है. सही मायने में कहें तो पत्रकारिता धर्म का निर्वाह पूर्व की तरह आज भी छोटे-छोटे अखबार व पत्रिका ही निबाह रहे हैं. बिना किसी अधिकारी तथा समाज में पैसे के बल पर धौंस दिखाने वाले पूंजीपतियों के प्रभाव में आयी जनता की आवाज को व्यवस्था तक पंहुचाने का काम कर रहे हैं. इस धर्म के निर्वाह में काफी कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ता है. अखबार निकालने में विज्ञापन की कमी और सरकार की ओर से अपेक्षित सहयोग न मिलना मुख्य कारण है. लेकिन कलम देश की बड़ी ताकत है भाव जगाने वाली, दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली. कलम के सिपाही अगर सो गए तो वतन के रखवाले वतन बेच देंगे. का भाव लिए छोटे अखबार के मालिक लगातार बड़े अखबार के सामने निर्द्वंद खड़े हैं. सांध्य दैनिक, साप्ताहिक तथा पाक्षिक निकाल रहे हैं. कुछ पाठकों की शिकायत रहती है कि बड़े अखबार विज्ञापनों से भरे-पड़े रहते हैं. कईं विज्ञापन इतने अश्लील रहते हैं कि परिवार के साथ अखबार पढ़ पाना मुश्किल होता है. शर्म आती है.  खबरों को चटपटी बनाने के  लिए इस तरह कालम चलाये जाते हैं कि बच्चों के सामने पढ़ना मुश्किल होता है. सरकार को छोटे पत्र-पत्रिकाओं को सहयोग करना चाहिए. बड़े अखबारों में प्रखंड स्तर के पत्रकारों का कितना शोषण किया जाता है कार्यालय की ओर से जरा उनसे पूछिये. दैनिक मजदूरी भी नहीं मिल पाता है. महंगाई के इस दौर में प्रखंड रिपोर्टर को अखबार प्रबंधक ही बेईमान बनाने को मजबूर करता है. एसी स्थिति में वह बेचारा आम आदमी की आवाज खाक बनेगा. - एक रिपोर्टर का दर्द

2 टिप्‍पणियां:

sahaj express ने कहा…

Jan Jeevan se Sarokaro ke mudde uthana aaj akl bilkul band ho gaya hai. Aise me chhote akhbar hee janta ki aawaj ban gaye hai. lekin in akhbaro ko chalan bahut kathin hai.

Santosh Sarang ने कहा…

dhanyavad akhilesh jee tippani karane ke liye.- santosh sarang