शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

पेरिस सम्मेलन में गूंजी मुजफ्फरपुर के लाल की आवाज

                                                                                                                                            - संतोष सारंग

पेरिस में आयोजित जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में बोलते चंद्रभूषण.
मुजफ्फरपुर के एक छोटे से गांव चैनपुर (मड़वन) में शय़ाम किशोर सिंह के घर में जन्मे चंद्र भूषण अपने बलबूते फ्रांस तक पहुंच गया. 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक पेरिस में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में सीएसइ के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे चंद्रभूषण का बचपन गांव में बीता. शुरुआती शिक्षा मुजफ्फरपुर में संत जेवियर्स एकेडमी, जूरन छपरा में हुई. चंद्र भूषण ने सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक व इन्वायरमेंटल प्लानिंग में एमटेक करने के बाद गुजरात में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना शुरू किया. इसी क्रम में अहमदाबाद में देश के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरमेंट (सीएसइ) के संस्थापक अनिल अग्रवाल के संपर्क में आये. इसके बाद दिल्ली पहुंचे और सीएसइ से जुड़कर धरती बचाने के प्रयास में जुट गये. फिलवक्त सीएसइ में बतौर डिप्टी डायरेक्टर जनरल चंद्रभूषण अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं.
पर्यावरण व विकास पर 10 से अधिक पुस्तकें
चंद्रभूषण ने पर्यावरण व विकास पर आधारित अंगरेजी में 10 से अधिक शोधपरक किताबें लिखी हैं, जिनमें फूड एज टॉक्सिन, फेसिंग द सन, गोइंग रिमोट, हिट ऑन पावर, रीच लैंड, पूअर पीपल : इज सस्टेनेबल माइनिंग पॉसिब्ल आदि प्रमुख हैं. वे सीएसई की पत्रिका 'डाउन टू अथ' के कंसल्टिंग एडिटर भी हैं. कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं. भारत सरकार के अलावा कई देशों की सरकारों के साथ जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर मिलकर काम कर रहे हैं. चंद्रभूषण नेशनल एक्रेडिएशन बोर्ड फॉर ट्रेनिंग एंड एडुकेशन एव ब्यूरो ऑफ इंडिया स्टैंडर्ड के सदस्य रह चुके हैं. भारत की पंचवर्षीय योजना की ड्राफ्टिंग कमेटी का भी हिस्सा रहे.
दुनिया से असमानता घटे 
एक दिसंबर को इटली के पूर्व प्रधानमंत्री मासिमो डीएलेमा के साथ पैनल डिस्कशन में चंद्रभूषण ने साफ कहा कि फेयर क्लाइमेट चेंज डील के लिए यहां हमें इस बात पर विचार करनी होगी कि कैसे दुनिया से असमानता घटे. वे कहते हैं कि हमारी आजीविका पर्यावरण पर निर्भर है. जल प्रदूषित होने पर मत्स्यपालन पर असर पड़ेगा. मिट्टी की सेहत खराब होगी, तो फसलों की उपज कम होगी. जंगल कटेगा, तो गरीबों को खाना पकाने के लिए लकड़ी नहीं मिलेगी. हमें यह समझना होगा कि पर्यावरण का संरक्षण कितना जरूरी है.
काम से आया बदलाव
चद्रभूषण बताते हैं कि खदान पर किये गये मेरे काम के कारण सभी माइनिंग डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट मिनेरल फाउंडेशन (डीएमएफ) का गठन किया गया. इसके तहत खदान की कमाई का 10 प्रतिशत हिस्सा गरीबों की सहायता के लिए डीएमएफ में जमा हो रहा है. इसी तरह पेय व खाद्य पदार्थो जैसे-शॉफ्ट ड्रिंक, चिकेन, मधु आदि में मौजूद कीटनाशी व प्रतिजैविक तत्वों पर मेरे काम के बाद खाद्य सुरक्षा के मानकों में बदलाव किया गया.
कांटी थर्मल को ले चिंता
पिछले एक साल से कोयला से बिजली पैदा करनेवाले प्लांट के पर्यावरण मानक में सुधार लाने के लिए उर्जा मंत्रालय व पावर प्लांट के खिलाफ लड़ाई जारी है. अभी हाल में मुजफ्फरपुर से लौटे चंद्रभूषण कहते हैं कि हम कांटी थर्मल पावर को लेकर भी चिंतित हैं. कहते हैं कि कांटी की हवा काफी प्रदूषित हो गयी है. प्रदूषण कम करनेवाली तकनीक उपलब्ध है, लेकिन पावर प्लांट इसके इस्तेमाल को ले इच्छुक नहीं है. हमें इसपर भी काम करना है.
http://epaper.prabhatkhabar.com/657055/MUZAFFARPUR-City/City#page/8/1

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