यह मेरे लिए बेहद ख़ुशी का क्षण था, जब 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला' के समापन कार्यक्रम के संचालन करने का दायित्व गाँव की उस लड़की को दिया जो कभी भर मुंह बोल नहीं पाती थी. अप्पन समाचार के लिए एंकरिंग करने वाली खुशबू को सञ्चालन का दायित्व देते में घबरा भी रहा था कि पता नहीं वह बीडीओ, थाना प्रभारी और जमा भीड़ के सामने बोल भी पायेगी या नहीं.जिस लड़की को ढाई साल पहले घर की देहरी से निकालकर कैमरे के सामने लाया था उस समय उसमें घबराहट थी, संकुचन था, आत्मविश्वास की कमी थी. आज उसके लिए भी सञ्चालन का पहला अनुभव था. लेकिन जब खुशबू माईक संभालकर सञ्चालन करने लगी तो लगा जैसे आत्मविश्वास से लबरेज खुशबू बस बोलते ही गई. बिना लड़खड़ाये, बिना शब्दों को तोड़े, बोलती ही गई, बिलकुल निर्बाध. पहली ही बार उसने सफल सञ्चालन का क्रेडिट ले लिया. हम सब हतप्रभ थे. उसके पिता भी उस कार्यक्रम में थे. गाँव के लोग भी अपनी बेटिओं को इस तरह पदाधिकारिओं के समक्ष बोलते देख रहे थे. हम खुद भी प्रफुल्लित थे कि चलो हमारी मेहनत रंग लाई. गाँव की लड़की भी कुछ कर सकती है, यह पहली बार विश्वास हुआ. सच, गाँव में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस, उसे मौका चाहिय सिद्ध करने के लिए. रिपोर्टर अनीता ने भी धन्यवाद् ज्ञापन किया तो पूरा माहौल ग़मगीन हो गया. अप्पन समाचार की सबसे बड़ी सफलता तो यही थी. सुदूर दियारा क्षेत्र के गाँव में सहमी-सहमी सी रहने वाली लड़की की जुबान को ताकत मिली. पत्रकारिता का क, ख नहीं जाननेवाली खुशबू आगे पत्रकार बनना चाहती है. यह मेरे जीवन की भी बड़ी कामयाबी है. हमारा यह अभियान गाँव की सैंकड़ों गरीब-उपेक्षित परिवारों की लड़कियों को बोलने की, जीवन में आगे बढ़ने की ताकत दे. ईश्वर से बस मैं यही कामना करता हूँ.
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