रिंकू कुमारी का जन्म वैशाली के एक गाँव अरनिया में हुआ था. ससुराल भी गाँव में ही है. लेकिन इधर कुछ सालों से वह मुजफ्फरपुर में रहकर "अप्पन समाचार" को कैमरे के जरिये आगे बढ़ाने में लगी है. विडियो एडिटिंग भी सीख रहीं हैं. शादी के वक्त कैमरे में उसके सपने, घूँघट में सजी दुल्हन का चेहरा और वह सुखद क्षण तो कैद हो गया था, लेकिन कभी कैमरे छुआ तक नहीं था. अब वह कैमरे चलाती है और लिखना भी सीख रही है. हाल में एक स्टोरी कवर करने के सिलसिले में लेप्रोसी मिशन अपनी टीम के साथ पहुंची तो कुष्ट रोगियों की व्यथा उसे झकझोर कर रख दिया. बस क्या था ? कलम उठाई और अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो दी. कुष्ट रोगियों के दर्द-ओ-जख्म को ब्लॉग पर डालने की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि, अप्पन समाचार से जुडी बाकी लड़कियों की तरह ही रिंकू भी अभी नेट यूज करना अच्छी तरह नहीं जानती, फिर भी रिंकू कुमारी की लिखी रिपोर्ट को मैं हू-ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूँ -
कुष्ट रोग एक ऐसी बीमारी है जिससे ग्रसित होने के बाद लोग जिन्दा तो रहते हैं, पर जीने का कोई मकसद नहीं रह जाता है. अपने बेटे, बहु, पति के होते हुए भी लोगों को गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए विवश किया जाता है. मैंने एक दिन अपनी टीम के साथ लेप्रोसी मिशन जाने का निश्चय किया. हमलोग वहां पहुंचकर नर्स से बातें की तो उन्होंने मुझे अपने साथ पहले महिला वार्ड ले गयी. नर्स ने उन लोगों से हमारी परिचय कराई. परिचय का दौर ख़त्म भी नहीं हुआ क़ि एक बूढ़ी हाथ जोड़कर बिलखने लगी और बोली बऊआ हमर फोटो न खींच. हमरा बारे में सब जान जायत तब हमरा पोती के बिआह न होयत. तोड़े अईसन जवान-जवान पोती-पोता है. एक बेर जागरण वाला आयलक आ पूरा दुनिया में हमर फोटो छाप देलक. हमर पोती के दिन उतरल रह गेल. मन करे कि जहर खा लेती. हमरा से जे पूछे के हौ से पूछ ल, लेकिन फोटो न छापअ. हमने उनसे पूछा कि आप यहाँ कितने दिनों से हैं तो बोली, बहूत दिन से यहाँ रहते हैं. मेरे घर के लोग यहाँ आते रहते हैं. परिवार के सभी लोग आते हैं. इसके बाद पुरूष वार्ड में पहुंची तो एक बुजूर्ग ने पूछने पर बताया कि मैं इसके पहले दो बार यहाँ इलाज कराने आ चूका हूँ. अब तो मेरे घाव में पिल्लू पड़ गया है. डाक्टर साहब बोलते हैं कि पैर काटना पड़ेगा.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें