- संतोष सारंग
पीरापुर बंदरा की अनुपा देवी घर का चूल्हा-चैकी कर सुबह सात बजे खेत की ओर निकल पड़ी. पति और दो बच्चे व्यवसाय के लिए निकल पड़े. अनुपा देवी को आज अहले सुबह बिस्तर छोड़ना पड़ा, क्योंकि मॉनसून की पहली बारिश हुई थी और उसे अपने खेत में धान का बिचड़ा गिराना था. पुरु ष अपने-अपने काम में मशगूल थे और अनुपा जैसी अन्य महिलाएं भी खुरपी-कुदाल के साथ किसानी में जुट गयी.

आश्चर्य कि इनमें अधिकांश महिलाएं भूमिहीन हैं. कुछ के पास ही एकड़ में भूमि है. बाकी बटाई व कटकेना पर जमीन लेकर धान, गेहूं, मक्का, दलहन व सिब्जयों की खेती करती हैं. खेती करने के लिए ये महाजन से सूद नहीं लेती हैं, क्योंकि इनके पास समूह की ताकत है. इड़ी व आत्मा से अनुदानित बीज व छोटे-छोटे कृषि उपकरण मिल जाते हैं. महिला समाख्या उत्प्रेरक की भूमिका में इन किसानों के साथ खड़ी रहती है.
इड़ी संस्था ने ‘सीसा प्रोग्राम’ के तहत मुख्यधारा से कटी इन महिलाओं को कम लागत में अधिक मुनाफा वाली खेती करने का प्रशिक्षण व कृषि किट मुहैया कराया. संस्था की सुगंधा मुंशी ने अपनी टीम के साथ सबसे पहले जिले के छह प्रखंडों में महिला किसानों की मांग के अनुसार गेहूं के खेत से खरपतवार के निबटान का प्रशिक्षण दिया. कम्युनिटी नर्सरी, बीज संरक्षण व जीरोटिलेज से खेती के बारे में जानकारी दी. आज ये महिलाएं इतनी जानकार हो गयी है कि आसपास के लोग इनसे सलाह लेने आते हैं. अनुपा दूसरे प्रखंडों में जाकर किसानों को नयी-नयी तकनीक के बारे में जानकारी देती हैं. तभी तो गांव के लोग अब इन्हें कृषि वैज्ञानिक भी कहने लगे हैं. पिछले दिनों खगौल स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र का एक्सपोजर विजिट कर लौटी महिला किसानों की टोली का कहना है कि हमने तो पुरु षों का काम आसान ही किया है. अब वे जायें बाहर कमाने, बिजनेस करने.
राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के कृषि वैज्ञानिक डॉ पंकज कहते हैं कि पहले पुरु ष किसान तय करते थे कि इस साल खेतों में कौन-सी फसल लगेगी. कौन-सी वेरायटी का बीज प्रयोग करेंगे. पर, अब जब से महिलाओं ने किसानी करना शुरू किया है, तस्वीर बदल गयी. इनके पति इन महिलाओं से पूछते हैं कि कौन-सी तकनीक, बीज की वेरायटी व फसल लगाना ठीक रहेगा. गांव में इन महिलाओं का महत्व बढ़ा है. लोग इनसे पूछ कर खेती करते है. महिला समाख्या की जिला प्रोग्राम पदाधिकारी पूनम कुमारी कहती हैं कि इन महिला किसानों को चार तरह के लाभ मिले हैं. इन्हें एक किसान के रूप में स्वतंत्न पहचान मिली. नॉलेज बैंक बन गयी हैं. इनमें लीडरशिप आया है और आर्थिक रूप से सशक्त हुई हैं.
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