बुधवार, 23 दिसंबर 2015

काला पानी की सजा भुगत रहे कई गांव


  • संतोष सारंग
नदी है, पानी है। पानी से घिरे खेत-खलिहान। किंतु सदा नीरा नहीं, है जहरीला। 13 बरस से अभिशप्त इलाका। आम जिंदगी, उर्वर धरती, हरियाली पर काली साया, मनुषमारा का। ‘मनुषमारा’ एक नदी है, जिसे लोग कहते रहे हैं जीवनदायिनी। ये ही आज छिन रही हैं लोगों की खुशियां, खेतों की उर्वरता, फसलों की हरियाली। देने को दे रही सिर्फ गंभीर बीमारीजनित काला पानी, जहरीला जल। ताउम्र के लिए बच्चे-बूढ़े हो रहे विकलांग, इलाका उजाड़। यही तो कहानी है रून्नीसैदपुर व बेलसंड के कई गांवों की।
सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर व बेलसंड के आधा दर्जन गांवों के लिए मानो ‘मनुषमारा’ नदी अभिशाप बन गयी है। उत्तर बिहार के इस सुदूर इलाके के लोग 15 साल से काला पानी की सजा भुगत रहे हैं। खड़का पंचायत के भादा
इस इलाके का करीब 20,000 एकड़ भूभाग दूषित पानी में डूबा है। स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि यहां के लोग अपनी माटी, अपना गांव छोड़कर पलायन करने को मजबूर हैं। पिछले दिनों तिरहुत प्रक्षेत्र के आयुक्त अतुल कुमार ने रून्नीसैदपुर के दो गांवों भादा टोल व हरिदोपट्टी का दौराकर वहां की अभिशप्त जिंदगी को निकट से देखकर द्रवित हुए। लौटकर उन्होंने अपनी वेबसाइट पर पूरी रिपोर्ट लिखी थी। इन गांवों में अधिकारियों की टीम जाकर शिविर लगाया और बुनियादी जरूरतों को पूरी करने की पहल शुरू की, लेकिन उनके तबादले के बाद सबकुछ स्थिर हो गया। रैन विशुनी पंचायत के मुखिया प्रेमशंकर सिंह कहते हैं कि यहां के किसान मर रहे हैं। जलजमाव के कारण फसल नहीं हो रहा है। जो जमीन सूखी है, वहां जंगल उग गये हैं। बनसुगर से लेकर कई जंगली जानवरों से लोग परेशान हैं। जमीन भी नहीं बिक रही है। जमीन से कुछ नहीं मिला, फिर भी मालगुजारी देनी पड़ती है। लोग निराश हो चुके हैं। लेबर तो पलायन कर गये, लेकिन किसान कहां जाये।
यह समस्या 1997 की बाढ़ के बाद तब शुरू हुआ, जब मधकौल गांव के पास बागमती नदी का बायां तटबंध टूटने के कारण मनुषमारा नदी, जो बागमती से मिलती थी, उसका मुहाना ब्लाॅक हो गया और उसका एक किनारा बेलसंड कोठी के पास टूट गया। इसके बाद इसका पानी रून्नीसैदपुर से लेकर बेलसंड से धरहरवा गांव तक फैल गया। उधर, रीगा चीनी मिल से निकलने वाला कचरा इस जलधारा के जरिये करीब दो दर्जन गांवों तक पहुंच गया और समस्या को और भयावह बना दिया।   
प्रेमशंकर सिंह बताते हैं कि बागमती पर रिंग बांध बनाने से यह समस्या उत्पन्न हुई। इसका समाधान जलनिकासी ही है। इसके लिए नहर खोदकर इस पानी को निकाला जाये, लेकिन यह संभव होता नहीं दिख रहा है। काला पानी की जलनिकासी के लिए अनवरत संघर्ष चलते रहे हैं। एक दशक पूर्व ही राज्य के जल संसाधन विभाग ने जलनिकासी के लिए एक विस्तृत योजना बनानी शुरू की, जो आज तक अमल में नहीं आयी। अभी हाल में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण मानकों के उल्लंघन के लिए रीगा चीनी मिल को नोटिस जारी किया।
 टोला गांव समेत हरिदोपट्टी, अथरी, रैन विशुनी, बगाही रामनगर पंचायतों की स्थिति बनी भयावह है। हजारों एकड़ जमीन पर काला व जहरीला पानी पसरा हुआ है। इसके चलते लोगों की खेती गयी। आजीविका का साधन छीन गया है और मुफ्त में मिल रहीं गंभीर बीमारियां। पशु-पक्षी, कीट-पतंग मर रहे हैं। जलनिकासी के लिए प्रखंड व जिला मुख्यालयों पर ग्रामीणों ने आंदोलन चलाया, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। अधिकारी बेफ्रिक हैं, और लोग परेशान। काला पानी का असर खेतों से लेकर घरों तक हो रहा है। सबसे अधिक प्रभावित भादा टोला है, जो रसायन घुले पानी से घिरा है। इस गांव के लगभग दो दर्जन लोग विकलांग हो चुके हैं। लालबाबू राम, रामसकल राम, सुखदेव राम, कुलदीप राम व राजदेव मंडल पुरी तरह निःशक्त हो गये हैं। चलने-फिरने में असमर्थ हैं। सगरी देवी, सुमित्रा देवी, सगरी देवी, कुसमी देवी समेत दो दर्जन लोग विकलांगता के शिकार हो चुके हैं। भादाडीह टोला के ही चार लोग हसनी देवी, बलम राम, सिंकिंद्र राम व विनय राम कुष्ठ रोग से ग्रसित हैं। बलम राम बताते हैं कि हम अभिशाप ढो रहे हैं। हमें सिर्फ आश्वासन मिला है। कोई मदद करने नहीं आया है। ‘जल ही जीवन है, लेकिन इनके लिए पानी मौत बन चुकी है’ जुमला बन गया है।      

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