मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

अब परदे पर गाँव का चैनल

Team of 'Next Story' interviewing Mr. Santosh Sarang, Creator of Appan Samachar
नेक्सट स्टोरी अप्पन समाचार पर ५० मिनट की फिल्म बना रहा है. मई में शूटिंग के सिलसिले में नेक्सट स्टोरी के कुंदन जी अपनी टीम के साथ मुजफ्फरपुर में तीन दिन ठहरे. अभी चार दिन पहले फिल्म की फाईनल शूटिंग हुई है. कुंदन जी की पहाड़ पुरुष दशरथ मांझी के ऊपर बनी एक फिल्म पटना में आयोजित पटना फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हुई. उनके साथ बिताये क्षण को भूल नहीं सकता. संभावना हैं कि अप्पन समाचार पर बन रहीं फिल्म जनवरी-फ़रवरी तक आएगी.  

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

अप्पन समाचार पर किताब


Writer Subodh Kumar with Ashawani, trainee reporter of Appan Samachar

पत्रकार सुबोध कुमार अप्पन समाचार पर किताब लिख रहे हैं. इसी सिलसिले में वे अखबार की नौकरी की व्यस्तता के बीच समय निकाल कर ९ दिसंबर को अप्पन समाचार के प्रणेता संतोष सारंग के साथ चान्द्केवारी गए. वहां के ग्रामीण परिवेश का अवलोकन किया. उन्होंने अप्पन समाचार से जुडी खुशबू, अनीता, आश्वनी से चैनल के काम, अनुभव आदि पर लम्बी बातचीत की. ग्रामीण पत्रकारिता और अप्पन समाचार का मॉडल को केंद्र में रखकर यह किताब लिख रहे हैं.  

मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

अप्पन समाचार पर फिल्म..

अप्पन समाचार ग्राम चान्द्केवारी में आपका स्वागत है.

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

अप्पन समाचार की फायरब्रांड टीम

एंकरिंग करती खुशबू
  • खुशबू ग्रामीण लड़कियों का सामुदायिक चैनल "अप्पन समाचार" के लिए एंकरिंग व रिपोर्टिंग करती हैं. सत्रह वर्षीय खुशबू दूरस्थ दियारा क्षेत्र की उन फायरब्रांड ग्रामीण लड़कियों में एक हैं, जिसने घर की दहलीज को लांघकर अपने नाजुक हाथों में कैमरा थामा है. गाँव की गरीबी, अशिक्षा, किसानों का दर्द, कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त रिश्वतखोरी को अपने कैमरे में कैद कर समुदाय के सामने उसे उजागर किया है. आज वह गाँव की कमजोर औरतों एवं उपेक्षित समुदाय की आवाज बनी हुई हैं. इसने मिशन आई द्वारा आयोजित चार 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला' में भाग लेकर विजुअल मीडिया की बारीकियों को तो सिखा ही है, गत साल रांची जाकर छः दिवसीय 'वृतचित्र कार्यशाला' में भी भाग लेकर वृतचित्र बनाने का गुर सीखा. खुशबू अप्पन समाचार की उस टीम में भी शामिल थीं, जो २००८ में कोसी में आई बाढ़ की त्रासदी को कवर करने सहरसा और सुपौल गई थीं. बाढ़ का इतना रौद्र रूप खुशबू ने अपने जीवन में पहली बार देखी थी. बाढ़ कवर करने आये जनसत्ता के प्रसून लतांत और एनड़ीटीवी के अजय कुमार ने  इन लड़कियों के जज्बे की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए थे. खुशबू चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. इसका जन्म एक किसान परिवार में २७ मई १९९३ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिलान्तर्गत साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर परनी छपरा गाँव में हुआ था. स्नातक पास पिता शशिभूषण कुमार किसानी करते हैं तो मैट्रिक पास मां पूनम देवी घर-गृहस्थी संभालती हैं. मां आंगनबाड़ी सेविका भी हैं. खुशबू अभी पास के ही एक कॉलेज स्वर्गीय नवल किशोर सिंह इंटर कॉलेज की आईए अंतिम वर्ष की छात्र है. वह मैट्रिक गाँव के एक स्कूल राजकीयकृत उच्च विद्यालय, धरफरी से प्रथम श्रेणी (६४.४%) से उतीर्ण की. खुशबू सिलाई-कढ़ाई तो जानती ही हैं. साथ ही, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाँव के एक निजी स्कूल में भी पढ़ाना शुरू किया है. वह बताती हैं कि अप्पन समाचार के लिए काम करते हुए मीडिया में ही कैरियर बनाने का लक्ष्य रखा हैं. इसी उद्देश्य से वह कंप्यूटर भी सिखाना शुरू कर दी है. क्रिकेट देखना व पढ़ाना उसका शौक है. खुशबू आगे बताती हैं कि अप्पन समाचार से जुड़ने के बाद मेरी सोच काफी बदल गई है. मैं संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ, विधवा महिलायों, गरीबों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ कुछ करना चाहती हूँ. आगे मैं खुद को एक पत्रकार के रूप में देखना चाहती हूँ. खुशबू के माता-पिता भी अपने बेटी की सोच, लगन व कामयाबी पर गर्व करते हैं. अपनी बेटी में आये  बदलाव का श्रेय अप्पन समाचार को देते हैं. खुशबू, तुम्हें सलाम!

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

Support us :

1. Dipesh Chandra : 
Dipesh Chandra
Dipesh Chandra is a Delhi based Independent Filmmaker. He pursuing Bachelors in Journalism & Mass Communication from Guru Govind Singh Indraprasta University, Delhi. He worked as an assistant director/fixer/researcher for movie prisms of light, With Irish film maker Yolanda barker for feature length documentary prisms of light, 82 minutes documentary (its under post production now ) in London. Mr. Dipesh Chandra also worked with American filmmaker Nadeem uddin as fixer and researcher for Ganges project (film focusing environmental problem) .(under production it will go for few years more). He worked with Mr. Uddin on a documentary on Bauls; Movie about “baul tribes” especially their traditional music which is in danger to die and worked as an assistant director (1)for national channel of India (DD K SRINAGAR). Mr. Chandra directed and produced all festive documentary for national channel of India (DD K SRINAGAR). He (along his creative team ) filmed kumbh mela 2010 and its under post production.

नाबार्ड ने अप्पन समाचार टीम को पटना बुलाया

अप्पन समाचार के काम को सराहा ... 
गत ९ अगस्त को मुंबई स्थित नाबार्ड मुख्यालय से पटना रीजनल ऑफिस पहुंचे वरिष्ठ पदाधिकारियों ने अप्पन समाचार की टीम को पटना बुलाकर इस ग्रामीण सामुदायिक चैनल की गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की. बिहार नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक और मुजफ्फरपुर नाबार्ड की जिला विकास प्रबंधक प्रीति थॉमस की उपस्थिति में इन आलाधिकारियों ने अप्पन समाचार की संपादक सह कैमरापर्सन रिंकू कुमारी एवं मिशन आई इंटरनॅशनल सर्विस के प्रवक्ता सह कार्यक्रम संयोजक अमृतांज इन्दीवर से इस ग्रामीण समाचार चैनल के बारे में विस्तार से बातें की एवं इसकी गतिविधियों की जमकर प्रशंसा की. नाबार्ड के अधिकारियों ने अप्पन समाचार को आर्थिक सहायता देने का भी आश्वाशन दिया है.

बुधवार, 4 अगस्त 2010

...और जब खुशबू-अनीता ने बोलना शुरू किया

यह मेरे लिए बेहद ख़ुशी का क्षण था, जब 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला' के समापन कार्यक्रम के संचालन करने का दायित्व गाँव की उस लड़की को दिया जो कभी भर मुंह बोल नहीं पाती थी. अप्पन समाचार के लिए एंकरिंग करने वाली खुशबू को सञ्चालन का दायित्व देते में घबरा भी रहा था कि पता नहीं वह बीडीओ, थाना प्रभारी और जमा भीड़ के सामने बोल भी पायेगी या नहीं.जिस लड़की को ढाई साल पहले घर की देहरी से निकालकर कैमरे के सामने लाया था उस समय उसमें घबराहट थी, संकुचन था, आत्मविश्वास की कमी थी. आज उसके लिए भी सञ्चालन का पहला अनुभव था. लेकिन जब खुशबू माईक संभालकर सञ्चालन करने लगी तो लगा जैसे आत्मविश्वास से लबरेज खुशबू बस बोलते ही गई. बिना लड़खड़ाये, बिना शब्दों को तोड़े, बोलती ही गई, बिलकुल निर्बाध. पहली ही बार उसने सफल सञ्चालन का क्रेडिट ले लिया. हम सब हतप्रभ थे. उसके पिता भी उस कार्यक्रम में थे. गाँव के लोग भी अपनी बेटिओं को इस तरह पदाधिकारिओं के समक्ष बोलते देख रहे थे. हम खुद भी प्रफुल्लित थे कि चलो हमारी मेहनत रंग लाई. गाँव की लड़की भी कुछ कर सकती है, यह पहली बार विश्वास हुआ. सच, गाँव में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस, उसे मौका चाहिय सिद्ध करने के लिए. रिपोर्टर अनीता ने भी धन्यवाद् ज्ञापन किया तो पूरा माहौल ग़मगीन हो गया. अप्पन समाचार की सबसे बड़ी सफलता तो यही थी. सुदूर दियारा क्षेत्र के गाँव में सहमी-सहमी सी रहने वाली लड़की की जुबान को ताकत मिली. पत्रकारिता का क, ख नहीं जाननेवाली खुशबू आगे पत्रकार बनना चाहती है. यह मेरे जीवन की भी बड़ी कामयाबी है. हमारा यह अभियान गाँव की सैंकड़ों गरीब-उपेक्षित परिवारों की लड़कियों को बोलने की, जीवन में आगे बढ़ने की ताकत दे. ईश्वर से बस मैं यही कामना करता हूँ.

'आउटलुक' में अप्पन समाचार के संतोष सारंग









अप्पन समाचार के जन्मदाता संतोष सारंग के प्रेरक काम को देश की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका 'आउटलुक' ने २००९ के जनवरी अंक में जगह दी थी. अप्पन समाचार की ओर से आउटलुक परिवार और लेखिका मनीषा भल्ला को बहुत-बहुत धन्यवाद!

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

जाति बड़ा कि विद्या का मंदिर

उत्तर प्रदेश के इलाके मैं इन दिनों स्कूली छात्रों का एक अनूठा आन्दोलन चल रहा है. ऊँची व पिछड़ी जातियों के विद्यार्थियों ने दलित रसोईये के हाथों बने मिड-डे मील खाने से इंकार कर दिया है. हालिया वाकया महोबा के लुहेड़ी गाँव स्थित एक विद्यालय का है. विद्या के इस मंदिर में छुआछूत की पराकाष्ठा देखिये कि छात्रों ने यहाँ तक कह डाला कि हमें वजीफा देना बंद कर दो, स्कूल से नाम काट दो, लेकिन हम दलित के हाथ का खाना नहीं खायेंगे. इसमें आश्चर्य करने की कोई नई बात नहीं है. छुआछूत भरी ऐसी अनेकों अत्याचार व जुल्मों-सितम की कहानियाँ इतिहास के पन्नों में दर्ज है. भारतीय संविधान के निर्माता अम्बेडकर साहब को भी बचपन से जवानी तक कितने ही जाति के जल्लादों से जूझना पड़ा था. स्कूल में सहपाठी साथ नहीं बैठने देते थे तो गाँव में कुँओं पर पानी पीने से वंचित कर दिया जाता था. वह दौर कुछ और था. तब मनु के संतानों की चलती थी, लेकिन अब तो हम २१वी सदी का वासी होने का दंभ भर रहे हैं. दुनिया के साथ कदमताल करते हुए, विकसित भारत की कल्पना करते हैं. क्या हम ऐसे ही भावी कर्णधारों से भारत के स्वर्णिम भविष्य की कल्पना करते हैं?

निःसंदेह ये बच्चे दोषी नहीं हैं. इन निर्दोष बच्चों को जाति नाम के दैत्यों के बारे में क्या पता. अपनी संतानों के कोमल मन पर तो उनके अभिभावक ही जाति का जहर डालते हैं. प्रगतिशील सोच का कहलाने वाला बिरादरी ही समाज में छूत, घृणा, तिरस्कार के वायरस का संवाहक होता है, कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. पहले ऊँची जातियां दलितों व पिछड़ी जाति के लोगों को अपने पास फटकने नहीं देता था. आज पिछड़ी जातियों को थोड़ी ऊँची कुर्सी मिली नहीं कि सवर्णों के साथ मिलकर लगा दलितों से घृणा करने. महोबा में इन्हीं दोनों तथाकथित बिरादरी के लोगों ने बच्चों के मन में दलित रसोईये के खिलाफ जाति का जहर फैलाया. इसे ढोंग नहीं तो क्या कहेंगे. दलितों-पिछड़ों से घृणा करने वाले, उनके हाथ का खाना व पानी लेने से परहेज करने वाले को क्या नहीं मालूम कि होटलों-ढाबों में खाना बनाने से लेकर प्लेट परोसने तक के काम में दलित लगे हैं. जिस चम्मच में आप मिठाई बड़े चाव से खाते हैं, उसी चम्मच को एक दलित ग्राहक भी अपने मुंह में डालता है. होटलों में दलितों और सवर्णों के लिए अलग-अलग व्यवस्था नहीं होती, फिर भी आप वहां नखरा नहीं करते. इस दोहरे चरित्र को क्या कहा जाये?

मानव को सभी प्राणियों में सभ्य व विवेकशील समझा जाता है. वही मानव दूसरे मानव को रंग, वर्ण, भाषादि के आधार पर बांटकर अत्याचार करे, समाज की एकता को भंग करे, असमानता को बढ़ावा दे, मानवाधिकारों को कुचले तो उसके सभ्य व विवेकी होने पर प्रश्नचिन्ह लगता है. मानव समुदाय के ऐसे कुकृत्य पर शर्म आती हैं. वैदिक काल से लेकर आज तक और आने वाली शताब्दियों तक वर्ण-व्यवस्था समाज को कलंकित करती रहेंगी. हालाँकि, सदियों से कुछ बड़े समाज सुधारकों और राष्ट्रीय नेतायों ने वर्ण-व्यवस्था को कुचलने का प्रयास करते रहे हैं. गाँधी, अम्बेडकर से लेकर दयानंद सरस्वती तक ने अनेकों प्रयास किये. उन्हें आशातीत सफलता तो नहीं मिली, पर सुधारों का मार्ग प्रशस्त जरूर हुआ.

जातिवाद ने इस देश से मानवी सदाचार का भी संहार किया है, जो अत्यंत खेदजनक है.  वर्ण और जाति की भावना ने हिन्दुओं की दृष्टि को इतना संकुचित कर दिया हैं कि कोई मनुष्य कितना भी सदगुणी और सदाचारी क्यों न हो, यदि वह किसी ख़ास वर्ण या जाति विशेष का व्यक्ति नहीं है तो वह पूजा नहीं जायेगा. महान संत रविदास शूद्र थे, लेकिन उनकी विद्वता का सानी नहीं नहीं था. इसके बावजूद वे समाज में सर्वमान्य नहीं हो सके. आज भी उनकी जयंती या पुण्यतिथि बड़े पैमाने पर केवल रविदास बिरादरी के लोग ही मनाते हैं. वोट की राजनीति करनेवालों को छोड़कर कोई सवर्ण बुद्धिजीवी संत रविदास या अम्बेडकर की जयंती क्यों नहीं मनाता. पटेल की जयंती पटेल मनायेगा, रविदास की जयंती रविदास मनायेगा, सहजानंद की जयंती भूमिहार-ब्राह्मण मनायेगा तो वृहत्तर समाज की रचना कैसे होगी. समाज में एकता व सौहार्द का माहौल कैसे बनेगा. वर्ण-व्यवस्था ने महान संतों, महापुरुषों को भी जातिगत आधार पर बाँट कर रख दिया है. यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है अपने देश का.

जाति और वर्ण का दंश पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक को नहीं छोड़ा. बीमारू प्रदेश बिहार-उत्तर प्रदेश की बात करें अथवा शत-प्रतिशत साक्षरता व विकास दी उत्तरोत्तर कहानी गढ़ने वाले दक्षिण के राज्यों की, कोई अछूता नहीं है इस बीमारी से. जब केरल या तमिलनाडु के मंदिर में कोई दलित प्रवेश कर जाता है तो बवाल मच जाता है. पूरे मंदिर परिसर को धोकर शुद्ध किया जाता है. पेशवाओं के शासनकाल में महाराष्ट्र में इन अछूतों को उस सड़क पर चलने की आज्ञा नहीं थी, जिसपर कोई सवर्ण हिन्दू चल रहा हो. उनके लिए आदेश था कि ये अपनी कलाई में या गले में काला धागा बांधे ताकि हिन्दू भूल से इन्हें छू न सके. पेशवाओं की राजधानी पूना में तो इन अछूतों के लिए यह आदेश था कि ये कमर में झाड़ बांधकर चले ताकि इनके पैरों के चिन्ह झाड से मिट जाएँ और कोई हिन्दू उनके पदचिन्हों पर पैर रखकर अपवित्र न हो जाएँ. अछूत अपने गले में हांडी बांधकर चले और थूकना हो तो उसी में थूके. भूमि पर पड़े अछूत के थूक पर किसी हिन्दू का पैर पड़ जाने से वह अपवित्र हो जाता था. अछूत भी मनुष्य है और पेशवा ब्राहमण भी मनुष्य था. एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य के साथ यह व्यवहार!

जाति प्रथा ने भारत का जो सबसे बड़ा अहित किया है, वह हिन्दू समाज में सामाजिक और राजनीतिक संस्कार विकसित न होने देना. हिन्दू अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में सोचता है, अपने परिवार के बारे में सोचता है, अपनी जाति की मर्यादाओं का ध्यान रखता है. किन्तु वह पूरे समाज के स्तर पर बहुत कम सोचता है. समाज का प्रबुद्ध वर्ग ब्राह्मणवाद और मनुवाद की निंदा करता है. सामाजिक न्याय और आरक्षण का विरोधी और पक्षधर दोनों अपने-अपने विचारों की वकालत मजबूती के साथ करता है, लेकिन जातिविहीन समाज की बात कितने लोग करते हैं. जाति भेद मिटाए बिना आजादी का जश्न हम कैसे मनाएंगे?

झूठी शान के लिए जिस तरह घरवाले अपनी ही संतानों के जान के दुश्मन बन रहे हैं. उन्हें प्रेम विवाह करने से रोकने के लिए सरेआम मौत के घाट उतार रहे हैं, उसी तरह समाज भी वर्ण-व्यवस्था की झूठी शान को बनाए रखना चाहता है. शायद ऐसे तथाकथित समाज के मठाधीशों को मालूम नहीं कि दुनिया तेजी से बदल रही है. ग्लोबल विलेज के रूप में सिमट रही दुनिया अब इंटरनेट व कंप्यूटर से संचालित हो रही है. जहाँ खुलापन ज्यादा है, व्यक्तिगत आजादी का डंका बज रहा है. कोर्पोरेट घरानों एवं निजी कंपनियों में काम करने वाले युवा-युवती बिना जाति देखें प्रेम विवाह करेंगे. बताईये, तब उनके बच्चे किस जाति के होंगे. यह सब होगा नहीं बल्कि हो रहा है. युवाओं को अच्छाईयों से भटकाकर, उसकी भावनाओं को कुचलकर, उनकी सोच को संकुचित कर, उन्हें विद्रोह करने को मजबूर कर रहा है समाज और परिवार. अरे, इंसानों अब तो छोड़ों संकीर्ण विचारों को. काम के आधार पर स्थापित वर्ण-व्यवस्था के तार तो टूट रहे हैं. पूंजीवादी व्यवस्था में वर्ण-व्यवस्था को तार-तार करने का दम है. इसका असर सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने में अहम् भूमिका निभा रहा है. जातिगत पेशा अब कहाँ रहा अपने मूल स्वरुप में. सैलून अब हजाम के अलावे सवर्ण भी चला रहे हैं. चमड़े की बनी वस्तुओं की दूकान चर्मकार के अलावे ऊँची जाति के लोग भी चला रहे हैं. यह सब तेजी से भागती दुनिया का कमाल है. दलितों से घृणा करने का पाठ पढ़ाने वाले मां-बाप और समाज को संभल जाना चाहिए. जाति की दुकानदारी ज्यादा दिनों तक चलने वाली नहीं है. २१ वीं सदी बहुत सारे मिथकों, परम्पराओं, वर्जनाओं को तोड़कर एक नई दुनिया की नींव रखनेवाली है. इसे नहीं भूलना चाहिए. आने वाली पीढ़ी का विद्रोह परवान ही चढ़ेगा, क्योंकि उसे छूना है चाँद. उसे नापना है धरती की लंबाई. उसे उतरना है सागर की गहराईयों में जो.

रविवार, 25 जुलाई 2010

जनसरोकार की खबरें अब बीते दिनों की बात

 ननकी चाचा ने अपनी मेहनत से बदली गाँव की तस्वीर, बुधिया की बेटी के हाथ में खुरपी के बदले अब कलम. अपने सखियों के संग ममता कर रही बचत, जैसी खबरें तथाकथित बड़े अखबार के पाठकों के लिए बीते दिनों की बातें होती जा रही हैं. अब इसके बदले छपती हैं बिकनी पहनकर सड़क पर दौड़ लगाने वाली बालाओं की तस्वीरें व खबरें. कंधे पर हाथ डालकर एक-दूसरे को किस करती जोड़े की तस्वीरें. बड़े अखबार के दफ्तर में जब खबरें आती हैं तो अधिकारी पूछते हैं कि पहले उसका प्रोफाइल बताओ. चेहरा सुन्दर है कि नहीं. खबर विज्ञापनदाताओं के खिलाफ तो नहीं है. इन सवालों के जवाब से संतुष्ट होने के बाद ही मिलती है जगह. अगर गाँव के दुखिया या बेबस आदमी की खबर है तो वह शायद ही प्रमुखता से जगह लें. खबरों की संवेदन्शीलता तथा महत्व के प्रति बदलते नजरिये के इस दौर में अब लघु पत्र-पत्रिकाओं की जवाबदेही बढ़ी है. सही मायने में कहें तो पत्रकारिता धर्म का निर्वाह पूर्व की तरह आज भी छोटे-छोटे अखबार व पत्रिका ही निबाह रहे हैं. बिना किसी अधिकारी तथा समाज में पैसे के बल पर धौंस दिखाने वाले पूंजीपतियों के प्रभाव में आयी जनता की आवाज को व्यवस्था तक पंहुचाने का काम कर रहे हैं. इस धर्म के निर्वाह में काफी कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ता है. अखबार निकालने में विज्ञापन की कमी और सरकार की ओर से अपेक्षित सहयोग न मिलना मुख्य कारण है. लेकिन कलम देश की बड़ी ताकत है भाव जगाने वाली, दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली. कलम के सिपाही अगर सो गए तो वतन के रखवाले वतन बेच देंगे. का भाव लिए छोटे अखबार के मालिक लगातार बड़े अखबार के सामने निर्द्वंद खड़े हैं. सांध्य दैनिक, साप्ताहिक तथा पाक्षिक निकाल रहे हैं. कुछ पाठकों की शिकायत रहती है कि बड़े अखबार विज्ञापनों से भरे-पड़े रहते हैं. कईं विज्ञापन इतने अश्लील रहते हैं कि परिवार के साथ अखबार पढ़ पाना मुश्किल होता है. शर्म आती है.  खबरों को चटपटी बनाने के  लिए इस तरह कालम चलाये जाते हैं कि बच्चों के सामने पढ़ना मुश्किल होता है. सरकार को छोटे पत्र-पत्रिकाओं को सहयोग करना चाहिए. बड़े अखबारों में प्रखंड स्तर के पत्रकारों का कितना शोषण किया जाता है कार्यालय की ओर से जरा उनसे पूछिये. दैनिक मजदूरी भी नहीं मिल पाता है. महंगाई के इस दौर में प्रखंड रिपोर्टर को अखबार प्रबंधक ही बेईमान बनाने को मजबूर करता है. एसी स्थिति में वह बेचारा आम आदमी की आवाज खाक बनेगा. - एक रिपोर्टर का दर्द

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

ग्रामीण मीडिया कार्यशाला संपन्न

उत्क्रमित मध्य विद्यालय, डुमरी परमानंदपुर (पारू), मुजफ्फरपुर में "मिशन आई इंटरनॅशनल सर्विस" के तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला'   का १५ जुलाई २०१० को समापन हुआ. अप्पन समाचार से जुडी स्थानीय महिला जन-पत्रकारों एवं प्रशिक्षु महिलाओं ने कार्यशाला में भाग लिया. प्रशिक्षार्थियों की संख्या ३० थीं. तीन दिन के प्रशिक्षण के दौरान लड़कियों ने खबरों के स्रोत, ग्रामीण क्षेत्रों में समाचार इकट्ठा करने में आनेवाली परेशानिओं से जूझने के तरीकों, कल्याणकारी योजनाओं से सम्बंधित जानकारियाँ, कैमरे के तकनिकी जानकारिया व् चलाने के हूनर, स्क्रिप्ट लेखन, पीटीसी  करना, एंकरिंग आदि की बारिकिओं के बारे में जानकारी हासिल की. जिले के साहेबगंज एवं पारू प्रखंड के चान्द्केवारी, हुस्सेपुर परनी छपरा, सोहंसा, हुस्सेपुर दोबंधा, डुमरी परमानंदपुर गाँव की आठवीं कक्षा से लेकर स्नातक तक की लड़कियों ने भाग लिया.
प्रशिक्षक थे-
(1) संतोष सारंग (संस्थापक, अप्पन समाचार),  (2) राजेश कुमार (वीडिओ एडिटर ),  (3) शिवशंकर विद्यार्थी (पत्रकार, दैनिक जागरण),  (4) जहीर अली (पत्रकार, दैनिक हिंदुस्तान),  (5) मनोज वत्स (सामाजिक कार्यकर्ता)
प्रशिक्षनार्थियों के नाम-
प्रीति कुमारी, सविता कुमारी, रिंकू कुमारी, जुलेखा खातून, नीतू कुमारी,  आरती कुमारी,  रुबीना खातून, ममता कुमारी, रागिनी कुमारी, पूनम कुमारी, अनीता कुमारी, रिंकू कुमारी, सुरभि कुमारी, कंचन कुमारी, नीतू कुमारी, अशविनी कुमारी, कुमारी काजल, विभा कुमारी, मुन्नी कुमारी, डौली कुमारी, विजेता कुमारी, खुशबू कुमारी, राबिता कुमारी, धर्मशिला कुमारी, प्रणिता कुमारी, सरिता कुमारी, जिज्ञासा कुमारी, अंचला कुमारी, माधुरी कुमारी, अनीता कुमारी, चांदनी कुमारी, ललीता कुमारी.

अंतिम दिन समापन सत्र  के मौके पर बतौर मुख्य अतिथी साहेबगंज के प्रखंड विकाश पदाधिकारी श्री मंडन मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि गांधी जी की कल्पना थी कि देश का विकास चाहते हो तो गाँव का विकास करो, देश को ज्ञानी बनाना चाहते हो तो गाँव को ज्ञानी बनाओ. अप्पन समाचार का प्रयास गांधी के सपनों को पूरा करने का एक नायब प्रणाली बनेगा. हमारी सांस्कृतिक विरासत काफी मजबूत है. इसे बचाने का बीड़ा आपको अप्पन समाचार के जरिये उठाना होगा. लड़कियों को सर्टिफिकेट वितरित करते हुए कहा कि गाँव की लड़कियों का प्रयास सराहनीय है.

देवरिया के प्रभारी थानाध्यक्ष मुन्नीलाल प्रसाद ने  अप्पन समाचार को परिवर्तनकारी प्रयास बताया. इस अवसर पर मिशन आई के प्रवक्ता सह कार्यक्रम संयोजक अमृतांज इन्दीवर, ट्रस्टी फूलदेव पटेल, पंकज सिंह मौजूद थे. कार्यक्रम का संचालन अप्पन समाचार की एंकर खुशबू एवं धन्यवाद ज्ञापन रिपोर्टर अनीता ने किया.

बुधवार, 7 जुलाई 2010

Appan Samachar-Solution Based Media

MEIS Trust produces “Appan Samachar” bulletin fortnightly. The content of this all-women community news network is decided by a "Team of Women Reporters" & "Community Editorial Board" based on viewer feedback and key campaign issues. Different segments might include:
• Community News - the issues of farmers & poor communities, such as government schemes, local health & hygine issues,  and upcoming events that are not covered by the mainstream news
• Public Opinions – the public opinions on different local and burning issues. 
• Success Stories - the students & local people who work on innovative ideas and inventions in agriculture sector and such as families that have found economic success through educating their girls
• Short Documentaries – the stories on various local problems, community based issues like-social evils, health & hygine, mal-nutrition, envirnment, HIV/AIDS, RTI and stories where families speak out against alcoholism.
• Legal Awareness - i.e., what to do if police personnel don't lodge FIR. 
• Local Culture and Music – could be introductions to the festivals of another community/religion
• Interviews – interview of local farmers, agriculture scientist, experts, local represantatives, polece personnel, local leaders, officials etc.
• Editorial – where the news network and the reporters take their stand-for-change on the issue and give follow up action points
• Local humour/jokes/skits – because we need to make people laugh!
• Election Campaign – election campaign to educate & aware voters.
• Human Rights & Environment Programme – special programme on human rights & environment.

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

मौत के सौदागरों की न्यायिक जीत

इतिहास माफ़ नहीं करेगा भारत की सत्ता को, अदालतों को, जांच एजेंसियों को और स्थानीय प्रशासन को. भोपाल की निचली अदालत के फैसले से भारतीय कानून व शासन व्यवस्था की पोल खुल गई. देश की जनता को न्यायपालिका पर से भरोसा उठ गया. भोपाल गैस कांड के बाद २६ सालों तक देश की जनता को गुमराह कर भारत की राजसत्ता ने यह साबित कर दिया कि जनता की जान की कीमत कौड़ी के भाव भी नहीं है. न्याय के लिए अंतहीन आन्दोलनों को धार देते-देते गैस पीड़ितों की आँखें पथरा गयी. इस बीच २० हजार से अधिक मृतकों की आत्माएं भटकती रहीं न्याय के लिए. क्या देश के रहनुमाओं के पास जवाब देने के लिए दो शब्द है ताकि इनकी आत्माओं को शांति मिल सके. राजनीति के बियावान में राजसी सुख भोग रहे इन राजनेताओं के पास शायद कोई जवाब नहीं हैं. किन्तु पीढ़ियाँ-दर-पीढ़ियाँ इनसे सवाल पूछती ही रहेंगी.
दुनिया की सबसे बड़ी व भीषणतम औद्योगिक दुर्घटना भारत में ही क्यों घटती है? और हादसे के केवल चार-पांच दिन के भीतर ही इसके मुख्य आरोपी सकुशल अमेरिका कैसे पंहुच जाता है? अफसोसनाक बात है कि वारेन एंडरसन को एअरपोर्ट तक छोड़ने भोपाल के डीएम-एसपी तक गए. इस प्रकरण में अब तो खुलासा हो चूका है कि वारेन को भगाने में अर्जुन सिंह से लेकर दिवंगत राजीव गाँधी तक शामिल थे. अगर यूनियन कार्बाईड के आठ अधिकारी कातिल है तो उससे बड़ा कातिल तो हमारे हाकिम-हुक्मरान हैं, जिन्होंने अमेरिकी कंपनी से लाखों डॉलर लेकर लाखों भारतीय जिंदगियों  को नरक में धकेल दिया मरने के लिए. फैसला आने के बाद कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने कहा कि न्याय दफ़न हो गया, जबकि उसी कांग्रेस की तब की सरकार पर सीबीआई के संयुक्त निदेशक बी एस लाल का आरोप है कि हम पर दवाब बनाया गया था.
कितनी बड़ी विडम्बना है कि इस लोकतांत्रिक देश की न्यायिक व्यवस्था को इतने भीषणतम त्रासदी पर फैसला सुनाने में २६ साल लग जाता है. वह भी इतना कमजोर फैसला कि शर्म से सर झुक जाता है.

गुरुवार, 24 जून 2010

..और अब निर्धन आसवानी के हाथ में है कलम और कैमरा

अप्पन समाचार ने लिया एक दलित लड़की को गोद 
अप्पन समाचार ने एक दलित लड़की को गोद लिया है. अप्पन समाचार ने मुजफ्फरपुर जिले के चान्द्केवारी गाँव की एक गरीब परिवार की दलित लड़की आसवानी कुमारी को पास के एक मध्य विद्यालय में आठवी कक्षा में नामांकन करवाया है. विदित हो कि यह लड़की आसाम में अपने चाचा के साथ रहकर पढ़ती थी. लेकिन चाचा से विवाद होने के कारण इसके पापा बिहार ले आये थे. वह लड़की पढ़ना चाहती थी, पर पापा पढ़ने से मना कर दिए थे. वह पढ़ना चाहती थी, लेकिन मम्मी-पापा की मर्जी के बिना वह कुछ कर नहीं सकती थी. वह निराश हो चली थी, क्योंकि कलम-कोपी का साथ छुट गया था. इसी बीच स्टोरी करने के क्रम में अप्पन समाचार की टीम को इस लड़की के बारे में पता चला. एंकर खुशबू ने उसके माता-पिता को समझाया. बाद में अप्पन समाचार के प्रणेता संतोष सारंग अपनी टीम के साथिओं-अमृतांज इन्दीवर, फूलदेव पटेल, पंकज सिंह के साथ उस लड़की के घर पहुंचे. उसके माता-पिता को शिक्षा के महत्व के बारे में समझाया. लड़की के माता-पिता ने कहा कि मेरे पास पैसा नहीं है इसे पढ़ाने के लिए. अंततः अप्पन समाचार की टीम लड़की के माता-पिता को समझाने में सफल हुई. अपने खर्च व स्थानीय लोगों की मदद से इस लड़की का नामांकन कराया गया. स्कूल के प्रिंसिपल ने मुफ्त में नामांकन कर किताबें उपलब्ध कराया. स्कूल इसे छात्रवृति भी देगा. लड़की में गजब का टैलेंट है. वह पढ़-लिखकर कुछ बनना चाहती है. उसने इच्छा जाहिर की कि वह भी अप्पन समाचार के लिए कैमरा चलाएगी. इस तरह झोपड़ी में दफ़न होता एक प्रतिभा अप्पन समाचार की मदद से शिक्षा के दीये जलाने चल पड़ा है. अब निर्धन मां-बाप की इस बेटी  के हाथ में है-कलम और कैमरा. इसके बूते वह दुनिया जीतना चाहती है. इसे आशीर्वाद दीजिये.

शनिवार, 12 जून 2010

संतोष सारंग ने दिलाई अप्पन समाचार को अंतर्रराष्ट्रीय पहचान

मुजफ्फरपुर मुख्यालय से लगभग ५५ किलोमीटर दूर सुदूर दियारा क्षेत्र मैं एक गाँव है चान्द्केवारी. सुविधाओं से वंचित इस अति पिछड़ा गाँव में अशिक्षा और गरीबी तो हैं ही, नक्सल प्रभावित भी है. इस क्षेत्र से ग्रामीण लड़कियों को घर की देहरी से निकाल कर सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ना आसान नहीं था. पर  इलाके में कई साल से सामाजिक गतिविधिओं में संलग्न रहे सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार संतोष सारंग ने स्थानीय कुछ साथिओं की मदद से लड़किओं को सिर्फ घर से निकाला ही नहीं, बल्कि उनके नाजुक हाथों में कैमरे भी थमाया. जब ये लड़कियां कैमरे और ट्राईपोड के साथ घर से निकल कर साईकिल पर सवार होकर समाचार इकठ्ठा करने निकलीं तो उन्हें ग्रामीणों की फब्तियो का सामना भी करना पड़ा. गाँव के लोग उनके परिजनों को बेटिओं को घर से बाहर नहीं जाने की सलाह तक दे डाले. तमाम विपरीत परिस्थितियो का सामना करते हुए जब पहला अंक लगभग ५० मिनट का बनकर तैयार हुआ  तो उनका उत्साह देखने लायक था. जिले के पारू प्रखंड के रामलीला गाछी (चान्द्केवारी पंचायत) के हात में जब पहली बार अप्पन समाचार का पहला अंक दिखाया गया तो ग्रामीणों के लिए यह एक नई चीजें थीं. फिर तो लोगों का सपोर्ट भी मिला और विरोध का सामना भी करना पड़ा.देखते-ही-देखते चान्द्केवारी देश-दुनिया की मीडिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया.  गाँव की लड़कियों की कहानी विदेशों तक पंहुची. अप्पन समाचार 'ऑल-वूमेन चैनल' के रूप में चर्चित हुआ. वैकल्पिक मीडिया के इस माध्यम को सामुदायिक चैनल बनाकर गाँव-गाँव में धूम मचाते हुए आज छः प्रखंडों के दर्जनों गाँव की समस्याओं को लड़कियाँ कवर करतीं हैं.
अप्पन समाचार के प्रणेता संतोष सारंग, जो खुद संघर्षमय जीवन के कठिन दौर को जीते हुए आज यहाँ तक पंहुचे है, इस अनोखे काम के लिए उन्हें १६ अक्टूबर २००८ को दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के हाथों "सिटीजन जर्नलिस्ट अवार्ड" प्राप्त हो चूका है. यह सम्मान सीएनएन-आईबीएन चैनल की ओर से दिया गया था. वैशाली जिले के जन्दाहा प्रखंड में जन्मे संतोष सारंग चार वर्ष की अवस्था में ही अनाथ हो गए. सैनिक पिता के निधन के बाद खेती-बाड़ी करके एवं मां को मिले मामूली पेंशन से तीन भाई-बहनों के साथ अपनी पढ़ाई पूरी की. आरएन कॉलेज, हाजीपुर से स्नातक भौतिकी में प्रथम श्रेणी से पास करने के बाद वे स्वतंत्र लेखन के सिलसिले में दिल्ली, मुम्बई से लिकर पटना तक ख़ाक छानते रहे. फिर २००० में समाजसेवा के क्षेत्र में आकर भी स्वतंत्र पत्रकारिता का सफ़र जारी रखा. वे मिशन आई इंटरनॅशनल सर्विस नामक संगठन बनाकर मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने लगे. संतोष पहली बार सुर्खिओं में आये, जब चान्द्केवारी की बलात्कार की शिकार एक गूंगी लड़की को न्याय दिलाने के लिए तत्कालीन एसपी अजिताभ कुमार का घेराव कर ऍफ़आईआर  दर्ज करने को मजबूर कर दिये. समाज ने उस बेबस लड़की को फतवा जारी कर हुक्का-पानी तक बंद कर दिया गया था. वह पीडिता बलात्कारी के बच्चे की मां बनी. पुलिस से लेकर समाज के ठेकेदारों से संतोष की टीम को इस बेबस लड़की को न्याय दिलाने लिए लड़ना पड़ा.  उसके बाद उस बच्चे को गोद लेकर उसका नाम रखा "आजाद".  इस बच्चे के नाम पर मरवन में सवा ग्यारह कट्ठा जमीन जनसहयोग से खरीदकर एक अनाथालय की नींव रखी. प्रख्यात गांधीवादी डॉ एस एन सुब्बाराव के हाथों "आजाद निर्मल आश्रम" की नींव डाली गई. संतोष को समाजसेवा की कीमत भी चुकानी पड़ी. घर में लोगों के तानें सुनें तो समाज और संगठन के कुछ स्वार्थी साथिओं ने इनपर तरह-तरह के बेबुनियाद आरोप लगाकर तोड़ने की कोशिश भी किया.  इन्हें धमकियाँ मिली.  यूनिसेफ के एक प्रोजेक्ट "पोषण पुनर्वास  केंद्र" के साथ काम क्या किया कि लोगों ने इनपर पैसे गबन का आरोप गढ़ दिया. एक बार इनपर बदमाशों ने हमला भी किया. गाँव में एक जमीन का विवाद सुलझाने गए तो इनपर तेजाब फेंका गया, लेकिन संतोष अपने मिशन से भटके नहीं. निजी जिंदगी में संघर्ष करते हुए समाजसेवा में जुटे रहे. संतोष कई लावारिश और सड़क पर पड़े असहाय लोगों को उठाकर अस्पताल पंहुचाकर उसकी जान बचाई. पूसा स्थित हरपुर गाँव के एक बिछड़े बेटे को उसके परिजनों से मिलवाया.यह युवक मुज़फ्फापुर की सड़क पर भूखा-प्यासा  लावारिश हालत में पड़ा हुआ था. संतोष ने २००४ में एक त्रैमासिक पत्रिका "मानवाधिकार हम सबका" निकाला. समाजसेवा में उत्कृष्ट काम के लिए "अनुव्रत सम्मान" व् जिला आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से "प्रशस्ति पत्र" भी मिल चूका है. २००४ में मुजफ्फरपुर और २००८ में कोसी के बाढ़ में संतोष अपनी टीम के साथ अनुकरणीय काम किये. इसी दौर में उन्होंने एक अनोखी परिकल्पना "अप्पन समाचार" को जमीन पर उतारा. अप्पन समाचार के अलावे संतोष आजकल किसानों के बीच काम कर रहे है. अपने साथिओं अमृतांज इन्दीवर, पंकज सिंह और फूलदेव पटेल के साथ मिलकर जैविक खेती को बढ़ावा देने में लगे है ये.

अभी हाल ही में ब्रिटेन की संस्था "वन वर्ल्ड मीडिया" ने स्पेशल अवार्ड कैटेगरी में दुनियाभर से जिन चार कामों को शॉर्टलिस्ट विनर घोषित किया है, उनमें भारत से २००३ के बाद "अप्पन समाचार" ही है. नेपाल, कांगो, केन्या इस सूची में शामिल हैं. नेक्सट स्टोरी 'अप्पन समाचार' पर ५२ मिनट की वृतचित्र बना रही है. सिविल सर्विसेज क्रोनिकल ने अप्पन समाचार को जीके  के रूप में शामिल किया है.

अप्पन समाचार आज जिले के छः प्रखंडों-साहेबगंज, पारू, सरैया, मरवन, मुशहरी, काँटी के दर्जनों गाँव को कवर करता है. लगभग २५ लड़कियाँ अप्पन समाचार के लिए बतौर रिपोर्टर, कैमरापर्सन, एंकर, एडिटर काम करती हैं. १४ साल से लेकर ३५ साल तक की ग्रामीण महिलायें जुडी हैं. सम्पादक रिंकू कुमारी के अलावे खुशबू कुमारी, अनिता कुमारी, प्रिया, नीरज, मुन्नी, विजय लक्ष्मी, प्रियं कुमारी, पिंकी आदि लड़कियाँ जब हाथ में कैमरा लेकर समाचार शूट करती हैं तो नहीं लगता है कि वे सभी नौसिखुआ हैं.

अप्पन समाचार का अंक लगभग ४५ मिनट का होता है. यह प्रोजेक्टर या डीवीडी के जरिये गाँव के हाट-बाजारों में शाम के समय दिखाया जाता है. समाचार बुलेटिन में किसानों के मुद्दे, गरीबी, सामाजिक कुरीतियाँ, कल्याणकारी योजनायों में भ्रष्टाचार, सरकारी योजनायों की जानकारी देनेवाली खबरें, पर्यावरण, कानूनी व् मानवाधिकार की जानकारी, महिला मुद्दे होते हैं.

गत लोकसभा चुनाव में अप्पन समाचार की टीम ने "वोट की चोट"  कार्यक्रम प्रसारित कर मतदाताओं को जागरूक करने का काम किया था. टीम की लड़कियाँ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एवं पूर्व राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलाम साहब के कार्यक्रम को भी कवर कर चुकी हैं. यह अवसर गाँव की लड़कियों के लिए रोमांचित करने वाला रहा. यह अप्पन समाचार का प्रभाव ही था कि सालों से केसीसी  ऋण के लिए भटकने वाले आसपास के किसानों को आसानी से बिना रिश्वत लिए बैंकों ने ऋण उपलब्ध करा दिया. नीम के पेड़ को लेकर गाँव में व्याप्त भ्रांतियां दूर होने लगी हैं.

मिशन आई समय-समय पर "ग्रामीण मीडिया वर्कशॉप" का आयोजन कर ग्रामीण लड़कियों को प्रशिक्षित करने का काम कर रहा है. अबतक लगभग ५० लड़कियों को प्रशिक्षण दिया जा चूका है. अप्पन समाचार ने टीम की तीन लड़कियों को रांची भेजकर वृतचित्र बनाने का प्रशिक्षण दिलवाया है. अभी एक गरीब व् दलित लड़की को अप्पन समाचार में बतौर कैमरापर्सन जोड़ा गया है. अप्पन समाचार ने पढाई छोड़ चुकी इस गरीब लड़की को पास के एक स्कूल में आठवीं में नामांकन कराया है.

बहरहाल, अफ़सोस इस बात का है कि बिहार के जिस प्रयोग को देश-दुनिया हाथों-हाथ लिया उसकी सुधि बिहार की सरकार ने नहीं ली, महिला सशक्तिकरण का अगुआ नीतीश कुमार बने बैठे हैं. संसाधनों का अभाव झेलते हुए अबतक यह चैनल अपना सफ़र जारी रखे हुए है, तो यह टीम का जज्बा और लड़कियों का समर्पण ही है. बिना पारिश्रमिक लिए समाज को बदलने का सपना पाले इन लड़कियों की यात्रा कंहाँ तक जारी रहती है, यह भविष्य के गर्भ में है.

संतोष सारंग कहते हैं कि मित्रों, शुभचिंतकों, साथिओं की मदद से अप्पन समाचार जिन्दा है. अब तक कंही से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली. छोटे-छोटे विज्ञापन इक्कठा करने का प्रयास चल रहा है. अब लड़कियाँ चैनल को चलने के लिए चंदा जुटाने को सोच रहीं हैं.



Description of Appan Samachar


Appan Samachar, an all-women village news network-is a fortnightly rural news channel run by a group of women, most of them from marginalized Dalit (downtrodden community), Other Backward Classes, Mushahar (rat eating community) & Muslim communities in Muzaffarpur district of Bihar in north India. This unique initiative began in December 2007 at Ramleela Gachhi near Deoria police station in Muzaffarpur. Presently, It is expanded in about hundred villages of six blocks like-Paroo, Sahebganj, Saraiya, Marwan, Kanti, Mushahari. This unique programme is the brainchild of a Social Activist & Journalist Mr. Santosh Sarang. Mr. Sarang is also the Chairperson of a trust named “Mission Eye International Service.”
            In the race of TRP and advertisement, maximum news channels  telecast horror and spice based news. The village and poor people and farmers’ problems are not in the objectives of these channels. The participation of women in media as a professionals is very low in Northern India. The voice of women can’t be raise without participation of women journalists. Thus, from these thoughts, the concept of Appan Samachar came on floor as an alternative media.
In a state where beating up and killing of women after branding them as witches is common, An all-women news channel seems impractical which was made practical by Appan Samachar is now creating waves in the rural backwaters. The team have no any formal training so they are learning it on the job. Time to time, a trust “Mission Eye International Service” are conducting Village Media Workshops to strengthen their skills.
Appan Samachar focussing on development issues, farmers problems, environmental issues, social evils, human rights issues, corruption in welfare schemes, women empowerment, child marriage, gender discrimination, female feoticide, child labour, public health & hygiene, sanitation etc. are grabbing eyeballs in these remote villages. This innovative initiative is bringing a change in the concerning villages. The team of these firebrand village based young girls and energetic journalists  are inspiring thousands of girls & women who feel herself weak and are neglected. The team of Reporters, Camerapersons, Anchors, Video Editors, Scrept Writers  are composed of young girls belonging to Scheduled Castes & Tibes, including Mushahar community. These are people who live by trapping and consuming rats from the fields. Also included in the production of news bulletin are girls from other backward classes like kahar, mallah, dhobi, koiry, badaee etc. who are marginalized and under-represented in the mainstream. When these girls ride bicycle to gather news & interviewing villagers, then the corrupt Panchayat Representatives, Officers, Bankers, Politicians face an afraid.
The screening of the news bulletin is free to air. Villagers watch Appan Samachar’s bulletin on a projector in villages’ markets. Sometimes, the reports are shown on portable TV set through CD player at weekly village haats and among community in the evening where there is more village crowd for its maximum impact and reach. Appan Samachar’s viewers are both rural and urban people. The bulletin is also screened in the district head quarter. Since the village has no electricity or cable network facility to watch satellite channels, Appan Samachar hires a generator to supply the power for the projector and other equipment.
Soon, the channel will put out programmes every week. The reaching of Appan Samachar made easier through CDs. Every edition of the bulletin is available in CDs for distribution on production cost. About two hundred CDs are sold by the team of girls fortnightly. The audience is spread over the district villages which counts over 5000 viewers.
Appan Samachar produces news capsule in Hindi and local dialect Bhojpuri & Bajjika. The centre of operations is a gloomy room at the remote Ramleela Gachhi village on the crime-ridden banks of the Gandak river. The asbestos roofed room has one table, two chairs, an old portable television. In this bleak lawless boondocks of one of India’s poorest states, three young girls and a newly-wed woman cycled around to gather news for their programme, when the initiative started. Now, two dozen girls are working with Appan Samachar as a journalist.
Carrying a low range Sony Handycam, a tripod and two microphone with the channel logo, they bump along on the dusty narrow village tracks to talk to people and shoot their stories.
The first edition of this fortnightly news programme was screened on a projector and featured such issues as witchcraft, empowerment of women, poverty and farm problems. For the second edition, Appan Samachar chose to do stories on education for the girl child.
Since the initiative started, Appan Samachar team received an opportunity to gather news of a visit of Bihar CM Nitish Kumar in a Mega Camp during Kosi flood in 2008 and to cover a programme where the former President and Missile Man Dr. A. P. J. Abdul Kalam participated. These two opportunities were great moment in the life of village women reporters.
As television has not reached the far-flung areas, Appan Samachar’s team wishes to bridge the information and education gap for the people. Managing with bare minimum resources, the channel has far-reaching impact. But despite the obstacles, the women feel the show must go on!
All-girls team of Appan Samachar is heralding a media movement from below. It is a surge from within where information is new found power and news broadcasting promises to become an agent of change. The villagers are excited with the prospect of their faces being displayed and voices heard by one and all in the area.  
            There are 24 women staffs fulfill their responsibilities as a journalist for Appan Samachar and about two dozen volunteers related to various fields like-Doctors, Professors, Social Activists, Lawyers, Businessman and Students help the team. Some prestigious & Government supported NGOs like-Bihar Mahila Samakhya Society, Rotary International (Muzaffarpur Chapter) also co-operate this initiative. The team raises fund for the channel throught local donation, episode sponsored, local traders, volunteers, to sell CDs and advertisement.     
BACKGROUND OF FIREBRAND GIRLS :
Most of the girls belonging to remote villages and poor families. Their parents are illiterate or semi literate. Family is also economically poor. The base of their livelihood is farming or labouring. Khushboo Kumari is 16-years old studying in 10+2. She is an Anchor cum reporter. Her father is a farmer who has not got a TV set. Radhika Kumari belongs to Scheduled Tribe “Mushahar”. She is studing in Kasturba Gandhi Vidyalaya and her father is a poor labourer. Radhika runs camera for Appan Samachar.  
STRENGTHENING GRASSROOTS DEMOCRACY :
In the recent General Election, Appan Samachar team organized many programmes named “Vote Kee Chot” in different villages to aware voters. Appan Samachar also telecasts many programmes focusing on welfare schemes and the programmes on human rights to strengthen and educate the citizen particularly by villagers. Appan Samachar is education and creating awareness among them about ‘Local Self Governance’ and its impact on our society.
IMPACT OF APPAN SAMACHAR :
A report on Self Helf Group running at Chandkewari village highlighted corruption in a Rural Bank. After this report, the Manager of that bank promised to distribute KCC loan and revolving fund to farmers and SHGs without any bribe. Within one and half year, many farmers  were granted KCC loans without any bribe. A report on corruption in NREGA scheme forced Block Programme Officer to lodge an FIR against Rojgar Sewak. 
FACING PROBLEMS :
No doubt, this initiative is the medium of empowerment of women and voiceless people. We can say, Appan Samachar is a media movement which is the strong tool of an alternative media or citizen journalism. But, the team has to face many crucial problems. Sometimes, girls reporters face vulgar words delivered by some taporytype youths or neighbourers. Local pressure is also forced, when any report on corruption is covered by the team. One day, a team of Appan Samachar went to gather a story on corruption in ‘Public Distribution System’ at Saraiya Block. The BDO (Block Development Officer) forced the team to go back without cover the story and use some hard words before these girls. But, the firebrand girls covered the news and interviewed Marketing Officer. It is not so easy to gather news by bicycle. Sometimes, these reporters have to go to far distance in remote and crime-ridden areas from their houses.
CHANGING LIVES :
Apart from all the wider impacts of Appan Samachar in the world of rural Bihar, this innovative concept has had a very crucial impact on the lives of the women who work as its production, editorial, screeing and advertisement team. They’ve had to push at the boundaries of the spaces they are conventionally expected to inhabit-whether to study further than they have been given the opportunity to, or negotiate the public sphere in an active sense.
     More fundamentally, all the members of the team have become reflective about their gender, class and class identities, and the way in which this moulds their lives and work. Take for example, Rinku had no interent to watch news bulletin on her TV set. She always saw only serials or films. After joining Appan Samachar, her more time spent on TV to watch news bulletin. Now Rinku has more knowledge about current affairs and various government schemes. Like Rinku, other girls also gain more knowledge and want to get a job in big media houses. This had a huge impact on her life. It gave her a confidence she never had before.  
LEARNING JOURNALISM :
Over the last two years, several inputs have been organized for the Appan Samachar reporters to build their skills in various areas. Efforts have been made to strengthen technical skills like reporting, script writing, video editing, anchoring, camera, production and documentary film making as well as to facilitate an understanding of current issues and politics. These inputs have been structured to cater to the specific needs of the women, many of whom have low levels of literacy and little access to other sources of information. Interactions and discussions with other media groups, women’s collectives, academics and other external resource people have also provided an excellent learning opportunity for the group. Inputs are provided to the team periodically on various current issues. Examples of some of the issues discussed have been the witchcraft, Right to Information, child marriage, female feoticide, crisis of water and issues around producing information in the local language have been held with the team so far.
RURAL JOURNALISM WORKSHOPS :
Designing the journalism workshops for rural girls/women with little exposure to mainstream media has been exciting and challenging. The workshop content has included discussions around what constitutes news, as well as the practical aspects of identifying sources of news, gathering information, validating news sources and conducting interviews. The workshops have adopted a hands-on approach, where participants gather news, do interviews and then file their story. An exposure to different styles of writing is also provided. These workshops are organized by a  trust “Mission Eye International Service” has also developed a training module. The workshop was visualized  as an input that would enable women to understand the basic principles of journalism. Developing an understanding on what constitutes news, sources of news and information, news collection, interviews and writing news were some of the key content issues.  
MEDIA COVERAGE & AWARDS :
This unique concept and the success story of the Creator & Director of Appan Samachar and these girls are highlighted by different national-international print and electronic media. The BBC, CNN-IBN, IBN7, NDTV, Vioce of Jermany, DD News, Zee News, Sahara Samay, India TV, Live India, ETV, FM radio, Aakashwani, Mahua Channel, UNI, PTI, The Pioneer, The Times of India, The Hindustan Times, Deccan Herald, The Hindu, The Telegraph, Outlook, Civil Services Chronical, Sopan Step, Dainik Hindustan, Dainik Jagran, Aaj, Prabhat Khabar, Sampadak, Media Scan, Kashmir Times, Down to Earth etc. are covered the story on Appan Samachar. A documentary film on Appan Samachar is also made by a freelance documentary film maker K. Niraj and 52 minutes documentary film is also under production by NEXT STORY team.
For this innovative effort, in October 2008 Appan Samachar received the prestigious “Citizen Journalist Award”-a national award from CNN-IBN (Network-18 group). This award was presented by the Chief Minister of Delhi Smt. Sheila Dixit. Britain based international organisation "One World Media" has selected Appan Samachar as a shortlist winner for Special Award category in 2010. There are four unique works has been shortlisted over the world. These are Appan Samachar (India), Rien que la Vérité (Congo), The Team (Kenya), Voices, Equal Access (Nepal).
 

मंगलवार, 4 मई 2010

अप्पन समाचार की एक और उपलब्धि

अप्पन समाचार को यूके की संस्था "वन वर्ल्ड मीडिया" ने स्पेशल अवार्ड के लिए विकासशील देशों से आये सैकड़ों प्रोपोजलों में से चयनित केवल चार प्रोपोजलों को शॉर्टलिस्ट किया है, जिसमें भारत से एकमात्र "अप्पन समाचार" को "शॉर्टलिस्ट विनर" घोषित किया है. जिन चार संगठनों/कामों को शोर्टलिस्ट विनर घोषित किया गया है, उनके नाम हैं-Appan Samachar (India), Rien que la Vérité (Congo), The Team (Kenya) और Voices, Equal Access (Nepal).
यह अप्पन समाचार टीम के लिए ख़ुशी की बात है. मालूम हो क़ि २००३ के बाद भारत से किसी भी काम को "वन वर्ल्ड मीडिया" ने स्पेशल अवार्ड के लिए न ही शॉर्टलिस्ट विनर घोषित किया और न फाईनल विनर घोषित किया. २३ जून को यूके के किंग पैलेस में दुनियाभर की हस्तियों की उपस्थिति में एक सेमिनार भी आयोजित हो रहा है, जिसमें अप्पन समाचार की परिकल्पना एवं इसकी गतिविधियों पर भी चर्चा होनी है.

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

अब गाँव में स्थापित होंगे स्टूडियो

मुजफ्फरपुर के गाँव में अब समाचार बनाने एवं उसके प्रसारण को सुविधाजनक बनाने के लिए स्टूडियो स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है. अप्पन समाचार को गाँव-गाँव तक पहुंचाने के लिए बिहार विधान चुनाव के पहले तक रामलीला गाछी, मरवन एवं छाजन में स्टूडियो बैठाने का प्रयास चल रहा है. इसके लिए अप्पन समाचार को सहयोग देनेवाली टीम संसाधन जुटाने में लग गयी है. आप तमाम ब्लोगेर्स से भी अपील है कि इस अभियान में यथासंभव सहयोग करने की कृपा करें. हमारा इमेल है : appansamachar@gmail.com, appansamachar@yahoo.com

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

कुष्ट के अभिशाप से शापित होते जीवन

रिंकू कुमारी का जन्म वैशाली के एक गाँव अरनिया में हुआ था. ससुराल भी गाँव में ही है. लेकिन इधर कुछ सालों से वह मुजफ्फरपुर में रहकर "अप्पन समाचार" को कैमरे के जरिये आगे बढ़ाने में लगी है. विडियो एडिटिंग भी सीख रहीं हैं. शादी के वक्त कैमरे में उसके सपने, घूँघट में सजी दुल्हन का चेहरा और वह सुखद क्षण तो कैद हो गया था, लेकिन कभी कैमरे छुआ तक नहीं था. अब वह कैमरे चलाती है और लिखना भी सीख रही है. हाल में एक स्टोरी कवर करने के सिलसिले में लेप्रोसी मिशन अपनी टीम के साथ पहुंची तो कुष्ट रोगियों की व्यथा उसे झकझोर कर रख दिया. बस क्या था ? कलम उठाई और अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरो दी. कुष्ट रोगियों के दर्द-ओ-जख्म को ब्लॉग पर डालने की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि, अप्पन समाचार से जुडी बाकी लड़कियों की तरह ही रिंकू भी अभी नेट यूज  करना अच्छी तरह नहीं जानती, फिर भी रिंकू कुमारी की लिखी रिपोर्ट को मैं हू-ब-हू प्रस्तुत कर रहा हूँ -
कुष्ट रोग एक ऐसी बीमारी है जिससे ग्रसित होने के बाद लोग जिन्दा तो रहते हैं, पर जीने का कोई मकसद नहीं रह जाता है. अपने बेटे, बहु, पति के होते हुए भी लोगों को गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए विवश किया जाता है. मैंने एक दिन अपनी टीम के साथ लेप्रोसी मिशन जाने का निश्चय किया. हमलोग वहां पहुंचकर नर्स से बातें की तो उन्होंने मुझे अपने साथ पहले महिला वार्ड ले गयी. नर्स ने उन लोगों से हमारी परिचय कराई. परिचय का दौर ख़त्म भी नहीं हुआ क़ि एक बूढ़ी हाथ जोड़कर बिलखने लगी और बोली बऊआ हमर फोटो न खींच. हमरा बारे में सब जान जायत तब हमरा पोती के बिआह न होयत. तोड़े अईसन जवान-जवान पोती-पोता है. एक बेर जागरण वाला आयलक आ पूरा दुनिया में हमर फोटो छाप देलक. हमर पोती के दिन उतरल रह गेल. मन करे कि जहर खा लेती. हमरा से जे पूछे के हौ से पूछ ल, लेकिन फोटो न छापअ. हमने उनसे पूछा कि आप यहाँ कितने दिनों से हैं तो बोली, बहूत दिन से यहाँ रहते हैं. मेरे घर के लोग यहाँ आते रहते हैं. परिवार के सभी लोग आते हैं.  इसके बाद पुरूष वार्ड में पहुंची तो एक बुजूर्ग ने पूछने पर बताया कि मैं इसके पहले दो बार यहाँ इलाज कराने आ चूका हूँ. अब तो मेरे घाव में पिल्लू पड़ गया है. डाक्टर साहब बोलते हैं कि पैर काटना पड़ेगा.

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

अप्पन समाचार पर बन रही है डाक्यूमेंट्री


ग्रामीण महिलायों का चैनल "अप्पन समाचार" एक के बाद एक कामयाबी का परचम लहरा रहा है। साइबर मीडिया प्रोडक्सन के बैनर तले के नीरज के निर्देशन में "एक वृत्त चित्र का निर्माण किया जा रहा है। २४ जनवरी २०१० को फिल्म मेकर के नीरज एवं उनकी टीम के सदस्य राजेश कुमार (संपादक), रत्नेश कुमार (कैमरामैन) ने चंद्केवारी स्थित अप्पन समाचार की उनिट पर जाकर फिल्म के लिए शूटिंग की। यह फिल्म अप्पन समाचार के प्रणेता संतोष सारंग की कामयाबियों, ग्रामीण लड़कियों के जज्बे, ग्रामीण पत्रकारिता के किये जा रहे प्रयोग, अप्पन समाचार का प्रभाव आदि को दिखायगा । शूटिंग अभी जारी है।

शनिवार, 23 जनवरी 2010

गुरुवार, 21 जनवरी 2010

अप्पन समाचार को विज्ञापन देकर इस अनोखे आन्दोलन को सहयोग करें


अप्पन समाचार एक अनोखा मीडिया आन्दोलन है। यह आन्दोलन बिहार की ग्रामीण महिलाओं द्वारा चलाया जा रहा है। ऑल-वूमेन चैनल के रूप में चर्चित इस प्रयास को सिटिजन जर्नलिस्ट अवार्ड भी मिल चूका है। यह आन्दोलन आगे बढ़े, इसमें आपका भी सहयोग जरूरी है। इस चैनल को आप विज्ञापन देकर अथवा स्पोंसर बन कर सहयोग का भागी बन सकते है। ऊपर रेट टैरिफ का नमूना देखें एवं संपर्क करें-
मोबाईल : ०९४७१४७३१०९

बुधवार, 13 जनवरी 2010

दो -दिवसीय "ग्रामीण मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला" संपन्न





ग्रामीण महिलाओं का सामुदायिक चैनल "अप्पन समाचार" से जुडी महिला पत्रकारों एवं कुछ नई लड़कियों को लेकर मिशन आई इन्तरनेशनल सर्विस एवं बिहार महिला समाख्या सोसईटी के संयुक्त तत्वावधान में  आयोजित दो-दिवसीय 'ग्रामीण मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला' संपन्न हो गया। यह आयोजन बिहार के मुजफ्फरपुर स्थित "बिहार महिला समाख्या" के सभागार में ३० से ३१ जनवरी २०१० तक सफलतापूर्वक संपन्न हुआ, जिसमें कुल ३७ महिलायें व लड़कियां शामिल हुई । इस कार्यशाला में मुशहर व अन्य दलित समुदाय की लड़कियां भी शामिल हुईं । प्रशिक्षण प्राप्त महिलायें/लड़कियां अप्पन समाचार के लिए रिपोर्टिंग करेंगी।
दो-दिवसीय इस कार्यशाला का उदघाटन बिहार विश्वविद्यालय के व्यस्क सतत शिक्षा विभाग की निदेशिका डॉ वंदना विजय लक्ष्मी ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। उनहोंने कहा कि मिशन आई का यह प्रयास "अप्पन समाचार" महिला सशक्तिकरण का एक अनूठा उदाहरण है।
दूसरे दिन समापन सत्र के मौके पर उपस्थित मुजफ्फरपुर की जिला परिषद् अध्यक्ष श्रीमती किरण देवी ने कहा कि महिलायें अगर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करे तो समाज में परिवर्तन संभव है। अप्पन समाचार आज ग्रामीण महिलायों की आवाज बन गयी है। इसे आगे बढाने की जरूरत है। जिला जनसंपर्क पदाधिकारी श्री नागेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने कहा की खबरों के लिए गाँव काफी उर्वर है, लेकिन मुख्यधारा की पत्रकारिता की गहरी पहुँच आज भी वहां तक नहीं है। ऐसे में वैकल्पिक मीडिया "अप्पन समाचार" के और विस्तार और अधिक से अधिक जगहों पर प्रदर्शन की जरूरत है। इस अवसर पर सभी प्रशिक्षुओं को आगत अतिथियों ने प्रमाण पत्र भी प्रदान किये। कार्यक्रम का संचालन मिशन आई के अध्यक्ष संतोष सारंग एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ हेमनारायण विश्वकर्मा ने किया।
कार्यशाला के दौरान प्रतिभागियों ने कैमरा चलाने का गुर सीखा। विजुअल मिडिया के बारे में एवं तकनिकी कौशल विकसित करने का भी हुनर सीखा। तीन ग्रुप में बंटकर लड़कियों ने तीन अलग-अलग मुद्दे पर स्टोरी शूट की। शहर में व्याप्त गन्दगी, रेड लाइट एरिया की हकीकत एवं कुष्ट रोगियों की व्यथा पर खबर शूट कर लड़कियों ने दिखा दिया कि उनके लिए कोइ काम कठिन नहीं है।

प्रशिक्षक थे - दैनिक जागरण के उप मुख्यसम्पादक कौशल किशोर शुक्ला व एम् अखलाक, टेलीविजन पत्रकार संतोष त्यागी व चन्द्र प्रकाश, फिल्म मेकर के. नीरज, दैनिक जागरण की ज्योति, अप्पन समाचार के संस्थापक संतोष सारंग, रोबिन रंगकर्मी व विडियो एडिटर राजेश कुमार सहित अन्य विशेषज्ञ । इस कार्यक्रम में विशेष रूप से शिरकत किये- प्रख्यात चिकित्सक व् सितारवादक डॉ निशीन्द्र किंजल्क, एनएसएस के पूर्व कार्यक्रम समन्वयक डॉ विकास नारायण उपाध्याय,  महिला समाख्या की जिला कार्यक्रम समन्वयक श्रीमती पूनम कुमारी, यूनिसेफ के आशीष, अमृतांज इन्दीवर, फूलदेव पटेल, अजित कुमार चौधरी आदि ।
प्रशिक्षु थीं-रिंकू कुमारी, खुशबू कुमारी, अनीता कुमारी, प्रिया कुमारी, पिंकी कुमारी, प्रियम कुमारी, रामा कुमारी, राधिका कुमारी, विजया लक्ष्मी, भावना प्रिती आदि।