शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

अप्पन समाचार की फायरब्रांड टीम

एंकरिंग करती खुशबू
  • खुशबू ग्रामीण लड़कियों का सामुदायिक चैनल "अप्पन समाचार" के लिए एंकरिंग व रिपोर्टिंग करती हैं. सत्रह वर्षीय खुशबू दूरस्थ दियारा क्षेत्र की उन फायरब्रांड ग्रामीण लड़कियों में एक हैं, जिसने घर की दहलीज को लांघकर अपने नाजुक हाथों में कैमरा थामा है. गाँव की गरीबी, अशिक्षा, किसानों का दर्द, कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त रिश्वतखोरी को अपने कैमरे में कैद कर समुदाय के सामने उसे उजागर किया है. आज वह गाँव की कमजोर औरतों एवं उपेक्षित समुदाय की आवाज बनी हुई हैं. इसने मिशन आई द्वारा आयोजित चार 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला' में भाग लेकर विजुअल मीडिया की बारीकियों को तो सिखा ही है, गत साल रांची जाकर छः दिवसीय 'वृतचित्र कार्यशाला' में भी भाग लेकर वृतचित्र बनाने का गुर सीखा. खुशबू अप्पन समाचार की उस टीम में भी शामिल थीं, जो २००८ में कोसी में आई बाढ़ की त्रासदी को कवर करने सहरसा और सुपौल गई थीं. बाढ़ का इतना रौद्र रूप खुशबू ने अपने जीवन में पहली बार देखी थी. बाढ़ कवर करने आये जनसत्ता के प्रसून लतांत और एनड़ीटीवी के अजय कुमार ने  इन लड़कियों के जज्बे की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए थे. खुशबू चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. इसका जन्म एक किसान परिवार में २७ मई १९९३ को बिहार के मुजफ्फरपुर जिलान्तर्गत साहेबगंज प्रखंड के हुस्सेपुर परनी छपरा गाँव में हुआ था. स्नातक पास पिता शशिभूषण कुमार किसानी करते हैं तो मैट्रिक पास मां पूनम देवी घर-गृहस्थी संभालती हैं. मां आंगनबाड़ी सेविका भी हैं. खुशबू अभी पास के ही एक कॉलेज स्वर्गीय नवल किशोर सिंह इंटर कॉलेज की आईए अंतिम वर्ष की छात्र है. वह मैट्रिक गाँव के एक स्कूल राजकीयकृत उच्च विद्यालय, धरफरी से प्रथम श्रेणी (६४.४%) से उतीर्ण की. खुशबू सिलाई-कढ़ाई तो जानती ही हैं. साथ ही, अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाँव के एक निजी स्कूल में भी पढ़ाना शुरू किया है. वह बताती हैं कि अप्पन समाचार के लिए काम करते हुए मीडिया में ही कैरियर बनाने का लक्ष्य रखा हैं. इसी उद्देश्य से वह कंप्यूटर भी सिखाना शुरू कर दी है. क्रिकेट देखना व पढ़ाना उसका शौक है. खुशबू आगे बताती हैं कि अप्पन समाचार से जुड़ने के बाद मेरी सोच काफी बदल गई है. मैं संकीर्ण विचारों से ऊपर उठकर समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ, विधवा महिलायों, गरीबों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ कुछ करना चाहती हूँ. आगे मैं खुद को एक पत्रकार के रूप में देखना चाहती हूँ. खुशबू के माता-पिता भी अपने बेटी की सोच, लगन व कामयाबी पर गर्व करते हैं. अपनी बेटी में आये  बदलाव का श्रेय अप्पन समाचार को देते हैं. खुशबू, तुम्हें सलाम!

मंगलवार, 17 अगस्त 2010

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1. Dipesh Chandra : 
Dipesh Chandra
Dipesh Chandra is a Delhi based Independent Filmmaker. He pursuing Bachelors in Journalism & Mass Communication from Guru Govind Singh Indraprasta University, Delhi. He worked as an assistant director/fixer/researcher for movie prisms of light, With Irish film maker Yolanda barker for feature length documentary prisms of light, 82 minutes documentary (its under post production now ) in London. Mr. Dipesh Chandra also worked with American filmmaker Nadeem uddin as fixer and researcher for Ganges project (film focusing environmental problem) .(under production it will go for few years more). He worked with Mr. Uddin on a documentary on Bauls; Movie about “baul tribes” especially their traditional music which is in danger to die and worked as an assistant director (1)for national channel of India (DD K SRINAGAR). Mr. Chandra directed and produced all festive documentary for national channel of India (DD K SRINAGAR). He (along his creative team ) filmed kumbh mela 2010 and its under post production.

नाबार्ड ने अप्पन समाचार टीम को पटना बुलाया

अप्पन समाचार के काम को सराहा ... 
गत ९ अगस्त को मुंबई स्थित नाबार्ड मुख्यालय से पटना रीजनल ऑफिस पहुंचे वरिष्ठ पदाधिकारियों ने अप्पन समाचार की टीम को पटना बुलाकर इस ग्रामीण सामुदायिक चैनल की गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की. बिहार नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक और मुजफ्फरपुर नाबार्ड की जिला विकास प्रबंधक प्रीति थॉमस की उपस्थिति में इन आलाधिकारियों ने अप्पन समाचार की संपादक सह कैमरापर्सन रिंकू कुमारी एवं मिशन आई इंटरनॅशनल सर्विस के प्रवक्ता सह कार्यक्रम संयोजक अमृतांज इन्दीवर से इस ग्रामीण समाचार चैनल के बारे में विस्तार से बातें की एवं इसकी गतिविधियों की जमकर प्रशंसा की. नाबार्ड के अधिकारियों ने अप्पन समाचार को आर्थिक सहायता देने का भी आश्वाशन दिया है.

बुधवार, 4 अगस्त 2010

...और जब खुशबू-अनीता ने बोलना शुरू किया

यह मेरे लिए बेहद ख़ुशी का क्षण था, जब 'ग्रामीण मीडिया कार्यशाला' के समापन कार्यक्रम के संचालन करने का दायित्व गाँव की उस लड़की को दिया जो कभी भर मुंह बोल नहीं पाती थी. अप्पन समाचार के लिए एंकरिंग करने वाली खुशबू को सञ्चालन का दायित्व देते में घबरा भी रहा था कि पता नहीं वह बीडीओ, थाना प्रभारी और जमा भीड़ के सामने बोल भी पायेगी या नहीं.जिस लड़की को ढाई साल पहले घर की देहरी से निकालकर कैमरे के सामने लाया था उस समय उसमें घबराहट थी, संकुचन था, आत्मविश्वास की कमी थी. आज उसके लिए भी सञ्चालन का पहला अनुभव था. लेकिन जब खुशबू माईक संभालकर सञ्चालन करने लगी तो लगा जैसे आत्मविश्वास से लबरेज खुशबू बस बोलते ही गई. बिना लड़खड़ाये, बिना शब्दों को तोड़े, बोलती ही गई, बिलकुल निर्बाध. पहली ही बार उसने सफल सञ्चालन का क्रेडिट ले लिया. हम सब हतप्रभ थे. उसके पिता भी उस कार्यक्रम में थे. गाँव के लोग भी अपनी बेटिओं को इस तरह पदाधिकारिओं के समक्ष बोलते देख रहे थे. हम खुद भी प्रफुल्लित थे कि चलो हमारी मेहनत रंग लाई. गाँव की लड़की भी कुछ कर सकती है, यह पहली बार विश्वास हुआ. सच, गाँव में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है. बस, उसे मौका चाहिय सिद्ध करने के लिए. रिपोर्टर अनीता ने भी धन्यवाद् ज्ञापन किया तो पूरा माहौल ग़मगीन हो गया. अप्पन समाचार की सबसे बड़ी सफलता तो यही थी. सुदूर दियारा क्षेत्र के गाँव में सहमी-सहमी सी रहने वाली लड़की की जुबान को ताकत मिली. पत्रकारिता का क, ख नहीं जाननेवाली खुशबू आगे पत्रकार बनना चाहती है. यह मेरे जीवन की भी बड़ी कामयाबी है. हमारा यह अभियान गाँव की सैंकड़ों गरीब-उपेक्षित परिवारों की लड़कियों को बोलने की, जीवन में आगे बढ़ने की ताकत दे. ईश्वर से बस मैं यही कामना करता हूँ.

'आउटलुक' में अप्पन समाचार के संतोष सारंग









अप्पन समाचार के जन्मदाता संतोष सारंग के प्रेरक काम को देश की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका 'आउटलुक' ने २००९ के जनवरी अंक में जगह दी थी. अप्पन समाचार की ओर से आउटलुक परिवार और लेखिका मनीषा भल्ला को बहुत-बहुत धन्यवाद!